हर रोज जिंदगी के जंजाल में हम
हर रोज जिंदगी के जंजाल में हम।फंसते जा रहे निकला जा रहा दम।
टूट रही रिश्तो की डोरी परिवारों की।
हालत हो रही नाजुक किरदारों की।
बदल रहे हाल दूरियां बढ़ती जाती।
मतलब की आंधी है असर दिखाती।
दिखावे का बढ़ रहा बाजार तेजी से।
मत पूछो अब भाव किलो केजी से।
कमर तोड़ महंगाई परवान चढ़ी है।
पीर पराई जाने किसको क्या पड़ी है।
मुंह आगे आदर पीछे पड़ी है बुराई।
दिखावटी मुस्कान फिर लबों पे आई।
कैसी चली बयार सबको स्वार्थ ने घेरा।
गटक पराया माल उदर पर हाथ फेरा।
गाड़ी मोटर यहां सफर में चलते जाना।
बनावटी हसीं लबों पर कभी ना लाना।
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
रचना स्वरचित व मौलिक है
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