Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

"दिव्य रश्मि से जुड़ाव: आत्मबोध, सामाजिक चेतना और एक पत्रकार की यात्रा"

"दिव्य रश्मि से जुड़ाव: आत्मबोध, सामाजिक चेतना और एक पत्रकार की यात्रा"

लेखक – विकास कुमार सिंह, पत्रकार, दिव्य रश्मि

कभी-कभी जीवन ऐसे मोड़ पर आ खड़ा होता है, जहाँ व्यक्ति को समय और परिस्थितियाँ इस प्रकार प्रभावित करती हैं कि वह भीतर तक बदल जाता है। यह परिवर्तन न केवल उसकी सोच, दृष्टिकोण और जीवन के प्रति दृष्टिकोण में होता है, बल्कि उसके कर्म और आत्मबोध में भी स्पष्ट दिखाई देता है। ऐसा ही एक परिवर्तन मेरे जीवन में तब आया जब मैंने 'दिव्य रश्मि' पत्रिका से जुड़कर पत्रकारिता की राह पर कदम बढ़ाया।

मैं विकास कुमार सिंह, एक सामान्य सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने की कोशिश करता रहा हूँ। बचपन से ही समाज के प्रति कुछ कर गुजरने की भावना थी, लेकिन दिशा स्पष्ट नहीं थी। कला और लोकसंस्कृति से जुड़ाव ने मेरी संवेदनशीलता को निखारा, परंतु इसके साथ-साथ समाज की समस्याएँ और विसंगतियाँ भी भीतर तक झकझोरती रहीं। बिहार की लोकगाथाओं, लोककलाओं और सांस्कृतिक विरासत के क्षेत्र में कार्य करते हुए मैंने देखा कि हमारे समाज में न केवल आर्थिक असमानताएँ हैं, बल्कि सांस्कृतिक और बौद्धिक उपेक्षा भी बहुत गहरी है।

जीवन का वह निर्णायक मोड़ तब आया जब हमारे परिवार के सम्मानित सदस्य आदरणीय श्री सुबोध सिंह राठौड़ भैया जी के माध्यम से मेरी मुलाकात 'दिव्य रश्मि' पत्रिका के संस्थापक एवं संपादक डॉ. राकेश दत्त मिश्रा जी से हुई। यह केवल एक साधारण भेंट नहीं थी, बल्कि एक नई सोच, एक नई दिशा और एक गहन उद्देश्य की ओर यात्रा की शुरुआत थी।

'दिव्य रश्मि' पत्रिका, जो सामाजिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों पर आधारित एक उच्चकोटि की मासिक पत्रिका है, ने मुझे आत्ममंथन और आत्मबोध के एक नये स्तर पर पहुँचाया। जब मैं इसके पत्रकार परिवार का हिस्सा बना, तो यह केवल एक दायित्व नहीं था, बल्कि आत्मा की पुकार का उत्तर था।

पत्रकारिता केवल सूचनाओं का आदान-प्रदान नहीं होती, यह समाज को दिशा देने, अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाने और अंधकार में दीप जलाने का कार्य है। 'दिव्य रश्मि' के पत्रकार के रूप में मैंने जब समाज की विभिन्न समस्याओं को समझा और लिखा, तो स्वयं के भीतर एक नई ऊर्जा का संचार हुआ।

मुझे अनुभव हुआ कि यह पत्रिका केवल लेखों का संग्रह नहीं, बल्कि यह एक जीवंत आंदोलन है – सनातन मूल्यों की पुनर्स्थापना, सामाजिक चेतना का जागरण, और भारत के सांस्कृतिक गौरव का प्रसार। इसकी हर एक प्रति में भारत की आत्मा धड़कती है – वह आत्मा जो वेदों, उपनिषदों, लोकगाथाओं और संत परंपराओं में रची-बसी है।


एक समय था जब मुझे अपने सनातन धर्म और भारतीय गौरवशाली इतिहास के बारे में बहुत सीमित जानकारी थी। परन्तु 'दिव्य रश्मि' ने मेरे विचारों के परिधि को विस्तृत किया। इस पत्रिका के माध्यम से न केवल मुझे धार्मिक ग्रंथों, शास्त्रों, और संतों की शिक्षाओं की जानकारी मिली, बल्कि इन शिक्षाओं को जीवन में उतारने की प्रेरणा भी प्राप्त हुई।

डॉ. राकेश दत्त मिश्रा जी ने जिस श्रद्धा, लगन और सेवा भावना से इस पत्रिका का संचालन किया है, वह प्रेरणादायक है। वे केवल एक संपादक नहीं, बल्कि एक द्रष्टा, मार्गदर्शक और समाजसेवी हैं, जिन्होंने पत्रकारिता को तपस्या का रूप दिया है।


'दिव्य रश्मि' केवल एक पत्रिका नहीं है, यह एक परिवार है। एक ऐसा परिवार जहाँ हर सदस्य को स्नेह, मार्गदर्शन और अपनापन मिलता है। जब भी मैं डॉ. मिश्रा सर से मिलता हूँ, तो उनकी आत्मीयता और सरलता मुझे भावविभोर कर देती है। वे हम सभी पत्रकारों को केवल सहकर्मी नहीं, बल्कि परिवार का अंग मानते हैं। यही कारण है कि इस पत्रिका से जुड़ाव केवल व्यावसायिक नहीं, बल्कि आत्मिक है।

पत्रिका में काम करते हुए मैं न केवल पत्रकारिता के गुर सीख रहा हूँ, बल्कि एक बेहतर मनुष्य बनने की दिशा में भी अग्रसर हूँ। यह मंच हमें यह सिखाता है कि लेखनी केवल शब्दों की नहीं, बल्कि विचारों की शक्ति है – और यदि सही दिशा में प्रयुक्त हो, तो समाज की दशा और दिशा दोनों बदल सकती है।

मैंने पत्रकारिता को समाजसेवा का माध्यम माना है। जब हम जनसामान्य की समस्याओं को उजागर करते हैं, उनकी पीड़ा को शब्द देते हैं, और उनके अधिकारों की बात करते हैं, तो पत्रकारिता जीवंत हो जाती है। 'दिव्य रश्मि' इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है कि एक पत्रिका किस प्रकार गाँव-गाँव, कस्बे-कस्बे में जनजागरण का कार्य कर सकती है।

हमारी टीम ने गाँवों में जाकर लोगों से संवाद किया, शिक्षकों, किसानों, विद्यार्थियों और महिलाओं से मिलकर उनकी समस्याओं को समझा और उन्हें पत्रिका में स्थान दिया। इससे न केवल उनकी आवाज़ ऊँची हुई, बल्कि उन्हें यह अहसास भी हुआ कि कोई है जो उनकी बात सुन रहा है, जो उनके साथ खड़ा है।

आज जब 'दिव्य रश्मि' अपने 12वें वर्ष में प्रवेश कर रही है, तो यह गर्व और कृतज्ञता का अवसर है। मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे इस पत्रिका से जुड़ने का अवसर मिला। मेरा संकल्प है कि मैं अपनी लेखनी को समाज के सबसे अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाने का प्रयास करूंगा।

मैं 'दिव्य रश्मि' के माध्यम से उस 'रश्मि' को जन-जन तक पहुँचाना चाहता हूँ, जो अज्ञान, अन्याय और अपसंस्कृति के अंधकार को दूर कर सके। मेरा मानना है कि यह पत्रिका आने वाले समय में भारत की सांस्कृतिक पुनर्जागरण की धुरी बनेगी, और मैं इस यज्ञ में एक समर्पित आहुति देने को तैयार हूँ।

जीवन में कई मोड़ आते हैं, पर कुछ मोड़ ऐसे होते हैं जो जीवन की दिशा ही बदल देते हैं। 'दिव्य रश्मि' से जुड़ाव मेरे लिए ऐसा ही एक मोड़ रहा है। यह जुड़ाव केवल एक पत्रिका से नहीं, बल्कि अपने धर्म, संस्कृति, समाज और आत्मा से पुनः जुड़ने का अवसर रहा है।

आज मैं गर्व से कह सकता हूँ कि –

"मैं 'दिव्य रश्मि' का पत्रकार हूँ, और यह केवल मेरी पहचान नहीं, बल्कि मेरी साधना है।"

हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews #Divya Rashmi News, #दिव्य रश्मि न्यूज़ https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ