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शिशुपाल वध

शिशुपाल वध

द्वापर युग में महाभारत में जितने भी शूरवीरों का वध अथवा हत्यायें हुई उनमें ज्यादातर उनके अपने सगे संबंधियों के हाथों ही हुई। शिशुपाल भी महाभारत का एक प्रमुख पात्र था। वह श्री कृष्ण के बुआ का लड़का था। उसका वध भी अपने फुफेरे भाई श्री कृष्ण के हाथों हुआ।
दरअसल शिशुपाल भगवान विष्णु के द्वारपालों जय और विजय में से एक जय था, जो सनकादिक मुनियों के श्राप वश दोनों पहले जन्म में हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष, दूसरे जन्म में रावण और कुंभकरण तथा तीसरे और अंतिम जन्म में कंस और शिशुपाल बने थे।
इस जन्म में शिशुपाल चेदि राज्य के राजा दमघोष के पुत्र तथा माता श्रुतश्रुवा के बेटे थे। श्री कृष्ण की बुआ कुंती थी, जो श्री कृष्ण के पिता बासुदेव सूरसेन की बहन थी। उधर शिशुपाल भी बासुदेव सूरसेन की एक और बहन श्रुतश्रुवा का पुत्र था। इस तरह शिशुपाल और श्री कृष्ण रिश्ते में भाई थे।
शिशुपाल के जन्म के समय उसे तीन आंख और चार भुजाएँ थी। उसके जन्म के समय यह आकाशवाणी हुई थी कि जिसके गोद में लेने से उसकी एक आंख और दो भुजाएँ गिर जाएगीं, उसी के हाथों उसकी मृत्यु होगी। आकाशवाणी में यह भी कहा गया था कि यह बालक बहुत वीर होगा। हांलाकि उसके विकृत रूप को देख कर पहले उसके माता पिता उसका परित्याग कर
देना चाहते थे, परंतु जब उन्होंने ने आकाशवाणी में यह भी सुना कि वह बहुत वीर होगा, तो उन्होंने अपना मन बदल दिया और उसे स्वीकार कर लिया।
बालक शिशुपाल के जन्म की खबर सुनकर बहुत सारे राजा वहाँ आये थे, जिनमें श्री कृष्ण भी थे। बारी बारी से सबों ने बच्चे को गोद में लिया और आदर किया। जब श्री कृष्ण ने उसे अपने गोद में लिया उसी क्षण उसका एक आंख और दो भुजाएँ गिर कर गायब हो गईं। यह देख शिशुपाल की माता और श्री कृष्ण की बुआ श्रुतश्रुवा आश्चर्य चकित और भयभीत हो गयी। उन्होंने श्री कृष्ण से उस बालक का भविष्य में न मारने का अनूरोध किया, जिसे श्री कृष्ण ने इस शर्त के साथ मान लिया कि वो उसकी सौ अपराध / गलतियों को क्षमा करेंगे। उसके बाद ही उसे दंडित करेंगे। इस पर उनकी बुआ खुश हो गयी कि उनका बेटा श्री कृष्ण के साथ भला इतना अपराध क्यों करेगा।
लेकिन आकाशवाणी की सच्चाई जानने के बाद शिशुपाल श्री कृष्ण को अपना दुश्मन समझता था। बड़े होने पर शिशुपाल रूक्मिणी से ब्याह करना चाहता था। वह रूक्मिणी के भाई रूक्म का परम मित्र था। रूक्म भी अपनी बहन का ब्याह शिशुपाल से करने को तैयार था लेकिन रूक्मिणी के माता पिता उसका ब्याह श्री कृष्ण से करना चाहते थे। बाद में श्री कृष्ण ने रूक्मिणी का हरण करके उससे ब्याह कर लिया। इससे श्री कृष्ण और शिशुपाल में और भी शत्रुता बढ़ गई।
महाभारत युद्ध जीतने के बाद नारद मुनि के परामर्श से महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ करने का निश्चय किया। इसमें अनेकों राजाओं बीर पुरूषों के साथ श्री कृष्ण और शिशुपाल भी आमंत्रण पा कर भाग लेने के लिए आए थे। इसमें पूजा के समय अग्रपूजा के लिए चुनाव करना था। इसमें सबों ने यह निर्णय लिया कि श्री कृष्ण को ब्रह्मा और शिव जी भी पूजते हैं। अतः इस यज्ञ में अग्रपूजा के अधिकारी श्री कृष्ण ही हैं। इस निर्णय के बाद युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण की अग्रपूजा शूरू कर दिया। इस पर शिशुपाल असहमत और गुस्सा हो गया और श्री कृष्ण को अग्रपूजा के लिए अयोग्य मानते हुए उन्हें अपशब्द बोलने लगा और गाली देने लगा। इस पर वहाँ उपस्थित भीष्म पितामह सहित सभी लोग नाराज हो गये, परंतु श्री कृष्ण ने सबको शांत कराया। वो अपने बुआ को दिये गये वचन निभाने के लिए शिशुपाल की सौ गालियाँ और अपमान सहते रहे। लेकिन जैसे ही उसने १०१ वां अपशब्द मुंह से निकाला श्री कृष्ण ने अपने चक्र सुदर्शन से उसका सिर काट कर उसे मृत्यु प्रदान कर दिया।
मृत्यु के उपरांत उसकी ज्योति श्री कृष्ण में समा गई और वह अपने असली द्वारपाल जय रूप को पाकर परम लोक बैकुंठ चला गया।

जय प्रकाश कुवंर
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