"छूते हुए एहसास."
आखिर में, जब तली में बच जाती है,
बस एहसास रह जाता है,
तुझसे भरे कप का मेरे हाथों में होने का,
इलायची और दूध की पी हुई चाय का,
तुम्हारा मेरे साथ होने का।
या यूं कहूं,
तुम्हारे सिर्फ होने का।
ये एहसास,
एक धुंधली तस्वीर की तरह,
मेरे दिल में बसा रहता है,
हर पल, हर सांस के साथ।
तुम्हारी बदामी सूरत की याद,
एक हल्की सी खुशबू की तरह,
मेरे आसपास घूमती रहती है,
मुझे तुम्हारी ओर खींचती है।
मैं जानता हूं,
तुम अब मेरे साथ नहीं हो,
लेकिन ये एहसास, ये यादें,
तुम्हें हमेशा मेरे करीब रखती हैं।
शायद,
तीन-चार घंटे में,
मैं फिर से तुम्हें पा लूंगा,
लेकिन तब तक,
ये एहसास, ये यादें,
मेरे लिए ही काफी हैं।
ये एहसास,
ये यादें, तेरी चाहत
मेरे जीवन का हिस्सा बन गई हैं,
और हमेशा रहेंगी।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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