उँगलियों में बाँध कर बारूद

उँगलियों में बाँध कर बारूद

मुझको पत्र मत लिख।।
जिस जगह की लाल मिट्टी
कह रही अपनी कहानी।
आँसुओं की पीर से
ऊपर उठी शोणित रवानी।।
और कोई रक्तस्रावी
सिंधु के आक्रोस जैसा
अविश्वासी सर्वनाशी अमानुष सा
पत्र मत लिख।।


धरा अब तक नहीं बदली
वही तो आकाश है।
कहाँ वाधा है गठन में
शिखर सा विश्वास है।।
शिला खण्डों से पिघल
धारा हमारे प्राण तक
रोज आती रही है कोई
‌‌‌‌नया षड्यंत्र मत लिख।।
नयी ऊर्जा, नया यौवन
हौसले नूतन अगर हैं
शून्य का आँगन खुला है
असीमित अनगिन डगर हैं।।
मातृभूमि विवेचना करती नहीं
सब देखती है।
हो सके तो शान्ति दो
संहारकारी मंत्र मत लिख।।
********रामकृष्ण
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ