ओ मेरे मनमीत
ओ मेरे मनमीत ,तुझसे जगी प्रीत ।
तुमसे हुए हर्षित ,
प्यारे गीत संगीत ।।
तुम मिले जब मुझे ,
जग मैं लिया जीत ।
बज उठे ये तार मेरे ,
रूप मृदुल ले गीत ।।
बज उठे पायल खनखन ,
मन का भी झंकार हुआ ।
अंतर्मन भी हिल उठा ,
तब तुमसे ये प्यार हुआ ।।
तू मेरा मैं तेरा मनमीत ,
हमदोनों ने इकरार किया ।
मैं तुझे तू मुझको समझा ,
हमदोनों ने स्वीकार किया ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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