"अन्याय की आग"
अन्याय की आग, धधकती सीने में,कलेजा जलता, पर आँखों में नमी नहीं।
अनैतिक कृत्यों का तांडव, चारों ओर,
परिणामों की चिंता, मन में नहीं।
संबंधों की डोरी, टूट रही धीरे-धीरे,
मर्यादाएं खो रही, अपना अस्तित्व।
अग्रज हो या फिर अनुज, सब एक समान,
अन्याय का जहर, घुल रहा हर रगों में।
सच और झूठ की लड़ाई, हर पल जारी,
असत्य की जीत, सत्य पर हार।
अन्याय का साम्राज्य, फैल रहा धीरे-धीरे,
न्याय की किरण, हो रही मंद।
क्या होगा इस दुनिया का, ये सोचकर डर लगता है,
अगर अन्याय की जड़ें, मजबूत होती जाएंगी।
हमें मिलकर उठना होगा, इस अन्याय के खिलाफ,
न्याय की मशाल, जलानी होगी हर हाथों में।
सच बोलने का साहस, रखना होगा हर दिल में,
अन्याय के खिलाफ आवाज, उठानी होगी हर गले से।
न्याय की जीत होगी, इसमें कोई शंका नहीं,
बस थोड़ा सा प्रयास, और हार माननी नहीं।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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