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अच्छे दिन बुरे दिन (लघु कथा )

अच्छे दिन बुरे दिन (लघु कथा )

विशाल गाँव के एक किसान का बेटा था, जो अब नौकरी के सिलसिले में शहर में रहता था। लम्बे समय के बाद उसे अपने घर की याद आयी और वह अपने गाँव आया। जब विशाल छोटा था उन दिनों उसके गाँव में एक छोटा सा हाट बाजार हुआ करता था, जहाँ खाने पीने तथा घर परिवार के जरूरत की लगभग सभी चीजें मिल जाया करती थी। उसी बाजार में सेठ भुवन दास का भी एक दुकान था, जो व्यवसायिक दृष्टि से खुब चलता मशहूर दुकान था। वहाँ हर सामान उचित दाम पर
सब समय मिल जाया करता था। विशाल भी अपने घर वालों के आदेशानुसार उसी सेठ भुवन दास के दुकान से तब सामान खरीदा करता था। सेठ भुवन दास अपने दुकान पर बैठे रहते थे और उनके नौकर चाकर सामान तौलते और देते थे। दुकान से सेठ भुवन दास को अच्छी आमदनी थी और उनका जीवन काफी सुखमय था।
इस बार भी लम्बे समय के बाद जब विशाल अपने गाँव आया था तो वह कुछ जरूरत का सामान और कुछ साग सब्जी आदि लेने के लिए अपने गाँव के बाजार में गया। इस लम्बी अवधि के साथ ही उस बाजार का रूप भी बिलकुल बदल चुका था। सेठ भुवन दास की दुकान भी उस बाजार से गायब हो चुकी थी। उस जगह पर दुसरे लोगों की दुकान खड़ी हो गई थी। इस लम्बे समय के अंतराल ने वहाँ सब कुछ बदल कर रख दिया था। विशाल खरीदारी करते हुए एक जगह पर आकर रूक गया। वहाँ जमीन पर बैठे एक बृद्ध और जर्जर काया वाले एक व्यक्ति को अपने सामने थोड़ी सी दो चार किस्म की हरी सब्जियों को एक टुटे टोकरी में रख कर बेंचते हुए पाया। उसके तन पर फटे हुये कपड़े थे और बढ़ी हुई दाढ़ी थी। विशाल ने देखा कि सब लोग उसकी उपेक्षा कर रहे हैं और उसकी सब्जी कोई खरीद नहीं रहा है, शायद वह वासी और सुखी हुयी सब्जी है इसलिए । उसने विशाल से भी सब्जी खरीदने को कहा। विशाल जब उसकी ओर मुखातिब हुआ तो उसने विशाल को पहचान लिया और कुशल क्षेम आदि पुछने के बाद विशाल से बोला। विशाल बाबू मैं ये दो किलो सब्जी लेकर बाजार में कब से बैठा हूँ पर कोई खरीद नहीं रहा है। आज मेरी सब्जी नहीं बिकी तो मैं भुखा रह जाउंगा और मेरी पत्नी भी भुखी रह जाएगी। विशाल को वह आवाज कुछ जानी पहचानी सी लगी तो विशाल ने पूछा। आप की आवाज सेठ भुवन दास जैसी लग रही है। इतना सुनते ही वह बृद्ध व्यक्ति रोने लगा और घिघियाते हुए बोला।
हाँ, विशाल बाबू, आपने ठीक पहचाना। मैं वही भुवन दास हूँ।
समय चक्र ने मुझे सेठ भुवन दास से दरिद्र भुवन बना दिया है।
फिर भी आज भी मैं भीख नहीं मांगता हूँ, बल्कि यही इस बाजार में कुछ कुछ बेंचकर जीवन चला रहा हूँ। जिस दिन कुछ नहीं बिकता है, उस दिन हम दोनों बुढ़ा बुढ़ी भुखे सो जाते हैं, शायद ईश्वर को यही मंजूर है। ईश्वर ने हमें अच्छा दिन दिखाया है, तो उसके दिए बुरे दिन को भी उसकी इच्छा समझ कर पार कर रहा हूँ।
भुवन दास की बातें सुनकर विशाल के आंखों में भी आंसू आ गये। थोड़े समय के लिए विशाल हतप्रभ होकर सोचने लगा कि ईश्वर किसके जीवन में कौन सा दिन कब लाता है, वह ईश्वर के सिवा कोई नहीं जानता। विशाल ने भुवन दास से पूछा कि आप की पूरी टोकरी के सब्जी का क्या कीमत है ।
इस पर भुवन दास बोले कि बाबू आप जब बच्चे थे और हमारे दुकान पर आते थे तब हम आपको हर बार आपके द्वारा खरीदे गए सामान के साथ आदर से आपके हाथ में एक टाफी देते थे। आज आपको देने के लिए मेरे पास टाफी नहीं है, लेकिन यह बासी सुखी थोड़ी सी सब्जी है। अब तो आप शहर में रहते हैं और बड़े भाग्य से आज आप से मिलना हुआ। इस जीवन में फिर आपसे मुलाकात हो या नहीं, अतः आप टाफी की जगह यह पूरी सब्जी की टोकरी स्वीकार कीजिये और ले जाइए। मुझे अत्यंत आनंद होगा। भुवन दास की बातों ने विशाल को भाव विभोर कर दिया। वह भुवन दास के हाथों में अपने जेब के सारे रूपये निकाल कर रख दिया और अपने थैली में टोकरी की सारी सब्जी को भरकर सबकुछ सोचते हुए अपने घर चला आया। 
 जय प्रकाश कुवंर
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