हरिशंकर परसाई की धार दिखती है डा रामरेखा सिंह के व्यंग्य में:-डा अनिल सुलभ

हरिशंकर परसाई की धार दिखती है डा रामरेखा सिंह के व्यंग्य में:-डा अनिल सुलभ 

  • साहित्य सम्मेलन में व्यंग्य कथा-संग्रह 'पुण्य की लूट' का हुआ लोकार्पण, आयोजित हुई लघुकथा-गोष्ठी ।
पटना, ७ अप्रैल। साहित्य की सबसे कठिन विधा है 'व्यंग्य' ! इसे साधना सरल नहीं है। इसे फूहड़ता से बचाना और साहित्य के लालित्य के साथ परोसना एक बड़ी कला है, जिसे व्यंग्य के महान लेखक हरिशंकर परसाई ने सिद्ध की थी। बिहार के चर्चित चिकित्सक और लेखक डा राम रेखा सिंह एक ऐसे ही व्यंग्यकार हैं, जिन्होंने इस कठिन विधा को सिद्ध किया है। इनमे परसाई की तीक्ष्ण धार भी दिखाई देती है।
यह बातें रविवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित व्यंग्य-संग्रह 'पुण्य की लूट' के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि लोकार्पित पुस्तक में ३१ व्यंग्य-कथाएँ हैं, जिनमे आज का पूरा समाज समाहित हो गया है। डा सिंह ने राजनीति ही नहीं धर्म सहित जीवन से जुड़े हर एक विषय से व्यंग्य खींच निकाला है और उसे रोचक प्रतीकों और संवादों के माध्यम से प्रस्तुत किया है। इनके व्यंग्य में 'हास्य' स्वतः-स्फूर्त होकर प्रस्फुटित होता है और पाठकों के मन को गुदगुदा जाता है।
वरिष्ठ साहित्यकार डा सीताराम सिंह 'प्रभंजन' ने पुस्तक की सविस्तार समीक्षा की और लेखक को व्यंग्य-साहित्य का महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर बताया। उन्होंने कहा कि लेखक ने व्यंग्य को साधने की गम्भीर चेष्टा की है। धन और पद की लोलूपता से ग्रस्त समाज की विद्रूपता को लेखक ने परसाई की दृष्टि से देखा है। 'बाज़ारबाद' के इस युग में जीवन की विविध अनुभूतियों को इन्होंने शब्द दिए है। इन्होंने सरलतापूर्वक मानवीय संवेदनाओं को अभिव्यक्त कारने में सफलता अर्जित की है।
समारोह के मुख्य अतिथि और राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि लोकार्पित पुस्तक के लेखक एक चिकित्सा-विज्ञानी होते हुए भी साहित्य का सृजन कर रहे हैं, यह हिन्दी के लिए बहुत शुभदायक विषय है। लेखक ने अपने व्यंग्य के माध्यम से, राजनीति, धर्म और प्रबुद्धसमाज में व्याप्त पाखंड को निकालकर समाज के सामने रखा है।
भारतीय चिकित्सा संघ ,बिहार के पूर्व अध्यक्ष डा अजय कुमार, सम्मेलन के उपाध्यक्ष जियालाल आर्य, डा चन्द्रभानु प्रसाद सिंह, डा मधु वर्मा, चंदा मिश्र आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए तथा लेखक को शुभकामनाएँ दीं।
इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में, डा शंकर प्रसाद ने 'पछताबा' शीर्षक से, डा पुष्पा जमुआर ने 'समझ से परे', डा पूनम आनन्द ने'नलेज', जय प्रकाश पुजारी ने 'सितार', मीरा श्रीवास्तव ने 'ईमानदारी', चितरंजन भारती ने 'आम जनता', कुमार अनुपम ने 'इलाज', अरविंद अकेला ने 'राष्ट्रपति पुरस्कार', डा मेहता नगेंद्र सिंह ने 'शब्द', प्रभात कुमार धवन ने 'प्रतिशोध', नरेंद्र कुमार ने 'नालायक', शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन ब्रह्मानंद पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।चर्चित व्यंग्यकार बाँके बिहारी साव, ई अवध बिहारी सिंह, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, डा अर्चना त्रिपाठी, वरिष्ठ कवि राशदादा राश, डा ब्रजनन्दन कुमार, डा शालिनी पाण्डेय, नीता सहाय, अम्बरीष कान्त, डा अरुण कुमार, डा जयंत कुमार, प्रो रामेश्वर पण्डित, सच्चिदानंद शर्मा, डा प्रेम प्रकाश, विजय कुमार, भास्कर त्रिपाठी, सुदर्शन प्रसाद आदि प्रबुद्धजन समारोह में उपस्थित रहे।
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