सुंदरता की कल्पना

सुंदरता की कल्पना

हर डाली पर फूल खिले है
हर पेड़ों पर फल लगे है।
देखने वाले देख रहे है।
पर मन सबके ललचा रहे है।
मिल जाए फल फूल अगर तो
मन की अभिलाषा पूरी होंगी।
देख तुम्हें फिर पास जो अपने
झूम उठेंगे फिर सारे सपने।।

मिल जाये ये फूल और फल
खाकर भर लेगें पेट तब हम।
कितने पेडों को कुचल दिये है
फल फूल देने के पहले हमनें।
फिर भी उम्मीदे रखते हम है
एक दिन देंगे कुछ तो फल वो।
कितना अंधा कितना स्वर्थी
देखो तो तुम इस मानव को।।

रंग बिरंगी इस दुनिया को
तुम मत देखो बंद आँखो से।
बंद करो तुम चश्मे से देखना
खुली आँखो पर विश्वास करो।
खेल समझ तेरे आ जायेगा
जब अपनों पर विश्वास करोगें।
बेरंग पड़ी तेरी दुनिया को
रंगो से तुम भर पाओगें...।।

रूप तुम्हारा इतना सुंदर
फूल भी फिके लगते है।
जो भी देखता है तुझको
दिलमें कमल खिल उठते है।
फिर सपनो में मानो खोकर
अमन चैन से सोते है।
प्रात: पुन: उठकर के प्रिये
तुम्हें सामने पाते हैं...।।


जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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