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कोई गीत लिखना चाहता हूँ

कोई गीत लिखना चाहता हूँ

कौन कौन पढ़ेगा सोंचता हूँ
मैं
शब्दों को जब किया अनावृत
उसने पूछ लिया
क्या मुझे बेंचना चाहते हो
बाजार में या मंच पर
कुआँ ,तालाब, गाँव ,घर
सब तो दम तोड़ रहे हैं
अब कहाँ बचा है
संस्कार ,अचार ,विचार ,व्यवहार
फिर कौन सा गीत लिखोगे
पीपल ,बरगद, नीम ,कटहल
फलदार बृक्ष सब कट रहे हैं
लग रहा है जंगली बबुल,
यूपकलिप्ट्स ,गुलमोहर के पेड़
छा गए हैं आजकल
जैसे लगा है
राजनीतिक घटाटोप
खेत में जल रहे हैं
फसलों के सूखे डंठल
गाय का चारागाह गया
खेतों से खत्म हो गए हरे चारे
गोशाला में मर रही ही गायें
नही मिल रहा भूंशा और पानी
क्या करें गो माता
उन्हें न अधिकार है
स्वेच्छा मृत्यु की न
न सड़कों पर प्रदर्शन की
वे खा रही हैं
पॉलीथिन नामचीनों के गाँव में
अब तुम्ही सोंचो कौन सा
गीत लिखोगे !
सनातन संस्कृति के रक्षा की
परिवार में व्याप्त असंतोष की
राजनेताओं की कथनी और करनी की
मठों में विराजित मठाधीशों की
वैभव गाथा की
धर्माधिकारियों के मिथ्या अभिमान की
तुम्हारे पास लिखने के लिए
कई विषय हैं
मेरे शब्द साधकों
ठहरो ,पढ़ो, सोंचो
फिर मुझे आमंत्रित करना
और सच सच लिखना
जो दिख रहा है
तुम्हारे आसपास।

अरविन्द कुमार पाठक "निष्काम"


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