पुस्तक मेरा मित्र

पुस्तक मेरा मित्र

पुस्तक है ज्ञान गंगा ,
पुस्तक मेरा मित्र है ।
पुस्तक है ज्ञान बढ़ाता ,
पुस्तक उज्ज्वल चरित्र है ।।
पुस्तक हमें शिक्षा देता ,
पुस्तक जीवन हेतु इत्र है ।
जीवन हो जाता सुगंधित ,
जीवन बनता ये पवित्र है ।।
पुस्तक जीवन महान बनाता ,
खुश होते देव देवी पित्र हैं ।
गाॅंव समाज प्रभावित होता ,
मानस पटल उभरते चित्र हैं ।।
कुरीतियाॅं आडंबर औ भ्रम ,
विरोध हेतु पुस्तक मित्र है ।
पुस्तक करता है दूर बुराई ,
उज्ज्वल बनाता ये चरित्र है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ