याद आ आई

याद आ आई

बदलते मौसम का अंदाज
बहुत ही रंग लाता है।
फिर पूरे वायु मंडल में
घटाओं को बिखेर देता है।
तभी तो पेड़ पौधे फूल
सभी लहरा उठते है।
और हवाओं के झोंको से
बिखेर देते है खुशबू को।।


नजारा देख ये जन्नत का
किसी की याद दिला रहा।
नदी तालाब बाग बगीचा आदि
अपनी भूमिकाये निभा रहे।
मानो स्वर्ग में हम अपने
मेहबूब को घूमा रहे।
और मोहब्बत के बारे में
बैठे बैठे सोचे जा रहे।।


वर्तमान में भूत की बातें
बैठकर अकेला सोच रहा हूँ।
और सपनो के सागर की
कल्पनाओं में बहा रहा हूँ।
और मेहबूब को मोहब्बत की
याद ताजा करवा रहा हूँ।।


जय जिनेंद्र 
संजय जैन "बीना" मुंबई
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