बदले हुए रिश्तों की दास्तां

बदले हुए रिश्तों की दास्तां

समय की धारा बहती रही,
परिवर्तन की लहरें उठती रहीं,
कुछ भी तो अलग नहीं था,
बस बदल गया था नज़रिया।

वही चेहरा, वही मुस्कान,
वही आवाज़, वही पहचान,
पर कुछ बदल गया था अंदर,
कुछ बदल गया था मन भीतर।

दूरियों का फासला बढ़ता गया,
पर दिलों की दूरी कम नहीं हुई,
यादों की डोर बंधी रही,
और भावनाओं की लहर उमड़ती रही

समय ने रंग बदले,
पर प्यार का रंग नहीं बदला,
वही तू और वही मैं,
बस बदल गया था नज़रिया।

नए अनुभवों ने जीवन को बदला,
नए रिश्तों ने दुनिया को बदला,
पर दिल का सच नहीं बदला,
और प्यार की गहराई नहीं बदली।

समय की धारा बहती रहेगी,
परिवर्तन की लहरें उठती रहेंगी,
पर कुछ भी तो अलग नहीं होगा,
'कमल' बस बदलता रहेगा नज़रिया।

. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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