अपने गाँव में अपना गाँव ढूढ़ रहा हूँ

अपने गाँव में अपना गाँव ढूढ़ रहा हूँ

परिवार में अपना परिवार ढूंढ़ राह हूँ
ढूंढते ढूंढते अब तो थकान हो रहा है
एकांत में बैठकर स्वयं को ढूंढ रहा हूँ।
अभी कोई और नही मिल रहा है रास्ता
इसलिए गुमनाम की तरह जी रहा हूँ
सुना था खोजने के लिए चलना पड़ता है
इसलिए बदनामों के साथ चल रहा हूँ।।
अरविन्द कुमार पाठक "निष्काम"
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ