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बड़प्पन का भूत मत पालिए

बड़प्पन का भूत मत पालिए

पालिए यदि पालना ही है तो
मनुजता, ऋजुता का एक पौध
मुठ्ठी भर राख का वजूद क्या है।
फालतू बातों में क्या ही रखा है
रखने का ही शौक है तो रखिए
एक निर्मल मन शरीर के अंदर
जो आपको ईश्वर के पास रखेगा।
पढ़ने से सुधार जाते जब लोग
चढ़ावे से प्रसन्न हो जाते भगवान
फिर तो पढ़े सब पा जाते मोक्ष
बाकी के लोग हो जाते अधोक्ष
पहले घरों में छुप छुप के मांगते थे
दुआओं के कटोरा अपने प्रासादों में
वे आज सड़कों पर बैंड बाजे के साथ
खुलेआम हाँथ पसारे घूम रहे निर्लज्ज।
जिसके पास न घर है न है तन पर वस्त्र
भूख से नित्य जो हो रहा है आज त्रस्त
अहंकारी बन बहुरूपिया घूम रहा है सर्वत्र
खिलाड़ी खेल रहा है गंदा खेल यत्र तत्र
अरविन्द कुमार पाठक "निष्काम"
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