कोई चढाई नहीं!
====(अर्चना कृष्ण श्रीवास्तव )दौर ऐसा था, हम थक गये,
पर, कोई चढाई नहीं!
न पथ बना, न लक्ष्य,
क्यों कर, चलते-चलते-
रूक गये !
दौर ऐसा था, दौड़ जारी थी,
रीढ की हड्डियों की तरह,
अचानक झुक गये !
पता नहीं, क्यों लगा,
लक्ष्य बदले, और रास्ते भी,
अपने ही पाँव से, पथ पर हम-
ठुक गये !
कविता मरी नही, साँस बाकीहै,
गले में आवाज, जाने क्यों रूक गये !
यात्रा अंतिम नहीं, उम्मीद सफर में है,
पानी दो,सासों को,
घुटकर ये सुख गये !
कविता तो जिन्दा है, आदम की चित्ता पर-
जलती है उतनी बार, लोग जितनी दफा फूंक गये !
ऐसे दौर की, कोई भरपाई नहीं!
हम थक गये, पर कोई चढाई नहीं !=========== सप्रेम समर्पित!
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