ए वर्ष का उपहार -सन्धेय

ए वर्ष का उपहार -सन्धेय

  • आज साहित्य सृजन को राष्ट्रीय मानक का परिवेश
देने ,इसकी समृद्धिकरण एवं सृजन को धारदार बनाने हेतु गया के मूर्धन्य साहित्यकारों की एक सभा संवाद सदन समिति विष्णु पद, गया के सभागार में 1:00 बजे से हुई। इस बैठक में संध्येय नाम से एक साहित्यिक संस्था के गठन का निर्णय लिया गया जिसका उद्देश्य साहित्यकारों के मानक रचनाओं पर समर्थ समीक्षकों द्वारा समीक्षा करना होगा ।इसके लिए समर्थ साहित्यकारों की एक समीक्षक समिति गठित की जाएगी ।रचनाकारों की रचना किसी विद्या में हो -कथा, कहानी ,कविता, इतिहास उन सबों की समीक्षा करने के उपरांत उसे प्रकाशित किया जाएगा । इसमें परंपरागत साहित्य को अक्षुण रखते हुए समसामयिक रचनाएं भी आमंत्रित की जाएंगी। ंसमीक्षा के आयाम शिल्प ,व्याकरण ,भाव ,संदेश ,संप्रेषण ,अभिव्यक्ति कौशल होगा ।इस पर उपस्थित साहित्यकारों ने अपने विचार रखे जिसमें विचार आए-समीक्षा के साथ रचनाएं छापी जाएँ ।रचनाएँ हिंदी ,उर्दू , मगही ,संस्कृत किसी भाषा में हों और किसी भी विधा में हो ।यहाँ के शाहित्यकारो को बुलाया जाए, उनसे रचनाएं आमंत्रित की जाएँ। इसमें किसी तरह का पूर्वाग्रह नहीं हो और साहित्यकार किसी तरह का दबाव महसूस नहीं करें ।यह संस्था समहित को समर्पित हो, इसमें साहित्यिक संवाद की गुंजाइश हो, कुछ ऐसे साहित्यकार हैं जिनकी रचनाएंँ अर्थाभाव के कारण नहीं छप सकी हैं उनकी रचनाएं भी इसमें छापी जाएंँ। मासिक प्रगति का बुकलेट प्रत्येक महीने में जारी किया जाए। 3 महीने में या किसी का कालांश पर एक विशेषांक विशेष विधा की रचनाओं से परिपूर्ण निकाला जाए। इस निमित्त एक कमेटी गठित की गई जिसमें श्री रविंद्र कुमार दिवाकर ,उपसचिव सामान्य शाखा, जिला समाहरणालय को अध्यक्ष, डॉ रामकृष्ण मिश्रा को उपाध्यक्ष ,डॉ सच्चिदानंद प्रेमी को सचिव ,डॉ सुदर्शन शर्मा एवं श्री अरुण हरलीवाल को उपसचिव, पंडित कन्हैयालाल मेहरवारको कोषाधिकारी बनाया गया। इस सभा की अगली बैठक इसी संवास सदन समिति में जनवरी के अंतिम रविवार को होगी। द्वितीय सत्र में सरस कार्यक्रम का आयोजन किया गया इसका शीर्षक था ,-ब्रज का फाग अभी तो बाकी है ।
पंडित कन्हैयालाल मेहरवार के सरस गीत से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। कविता पढ़ने वालों में डॉ सच्चिदानंद प्रेमी डॉ अरुण , डॉ रामकृष्ण मिश्र,अरूण हरलीवाल के अतिरिक्त श्री रविंद्र कुमार दिवाकर जी भी थे जिन्होंने गीति में कहा -जहां गजाधर हुए अवतरित गया धाम उसी को कहते हैं.
धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम ने विश्राम लिया।
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