नेक नीयत सदा है होता ,

नेक नीयत सदा है होता ,

हर नेक दिल इंसान का ।
नेक नियति सदा करता ,
रूप लिए ही भगवान का ।।
सदा ख्याल रखा करते ,
दीन दुःखी के अरमान का ।
सबके हैं उपकार करते ,
लेकर नाम वे भगवान का ।।
सदा निष्ठा कर्म पे चलते ,
लेकर अपने ही ईमान का ।
अतिथि को ईश हैं मानते ,
ख्याल रखते मेहमान का ।।
वैसे ही जन होते सज्जन ,
गाॅंव जवार के हैं भान का ।
गांव समाज में होते पूज्य ,
कर्म करते हैं वे महान का ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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