अपने हिस्से की लाचारी किसको दूँ।
डॉ रामकृष्ण मिश्रअपने हिस्से की लाचारी किसको दूँ|
कौन सहे ऐसी नक्कारी किसको दूँ।।
आने वाले कल की क्या सोचे कोई
सबल अबल की चर्चा में खोये कोई।
विस्तारित आयाम चुनौती सा लगता
सब तो हैं अलमस्त हुँकारी किसको दूँ।।
हवा उठी है भीखमँगीी जिस कोने से
वहीं नाचते अकर्मण्य भी बौने से।
नाच रहै बंदर कत्थक से टीले पर
ताण्डव का संकेत आखरी किसको दूँ।।
इच्छाओं के दर्द और कब खौलेंगे
गूँगी आँखों के पुतले कब बोलेंगे।
झाल बजाने वाला है अब समय कहाँ
कौन आ रहा अपनी पारी जिसको दूँ।
आने वाले कल की क्या सोचे कोई
सबल अबल की चर्चा में खोये कोई।
विस्तारित आयाम चुनौती सा लगता
सब तो हैं अलमस्त हुँकारी किसको दूँ।।
हवा उठी है भीखमँगीी जिस कोने से
वहीं नाचते अकर्मण्य भी बौने से।
नाच रहै बंदर कत्थक से टीले पर
ताण्डव का संकेत आखरी किसको दूँ।।
इच्छाओं के दर्द और कब खौलेंगे
गूँगी आँखों के पुतले कब बोलेंगे।
झाल बजाने वाला है अब समय कहाँ
कौन आ रहा अपनी पारी जिसको दूँ।
रामकृष्ण
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