"किताबों की तरह"

"किताबों की तरह"

किताबों की तरह भीतर
बहुत अल्फ़ाज़ हैं
पर ख़ामोश हूँ मैं
किताबों की तरह

मेरे पास हैं ज्ञान के भंडार
पर मैं ज़ाहिर नहीं करता
मेरे पास हैं कहानियाँ
पर मैं सुनाता नहीं

मेरे पास हैं कविताएँ
पर मैं सुनता नहीं
मेरे पास हैं गीत
पर मैं गाता नहीं

मैं ख़ामोश हूँ
क्योंकि मैं जानता हूँ कि
शब्दों में ताक़त होती है
और मैं नहीं चाहता
कोई मेरे शब्दों से आहत हो

मैं ख़ामोश हूँ
क्योंकि मैं जानता हूँ
कि शब्दों की शक्ति होती है
और मैं नहीं चाहता कि
कोई मेरे शब्दों का गलत इस्तेमाल करे

मैं ख़ामोश हूँ
क्योंकि मैं जानता हूँ कि
शब्दों की ज़िम्मेदारी होती है
और मैं नहीं चाहता कि
मैं अपनी ज़िम्मेदारी से भागूँ

मैं ख़ामोश हूँ
लेकिन मेरे भीतर
बहुत कुछ है
जो मैं कहना चाहता हूँ

मैं ख़ामोश हूँ
लेकिन मेरे भीतर
बहुत कुछ है
जो मैं सुनाना चाहता हूँ

मैं ख़ामोश हूँ
लेकिन मेरे भीतर
बहुत कुछ है
जो मैं गाना चाहता हूँ

एक दिन
मेरे भीतर की ख़ामोशी
ज्वालामुखी के विस्फोट
के मानिंद टूटेगी और मैं
किताबों की तरह
अपने अल्फ़ाज़ बोलूँगा

और जब मैं बोलूँगा
तो मेरी आवाज़
किताबों की आवाज़ से भी ज़्यादा
कहीं ज्यादा बुलंद होगी

स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ