ज्ञानवापी मंदिर के बारे मे विस्तृत जानकारी...

ज्ञानवापी मंदिर के बारे मे विस्तृत जानकारी...

【पं. नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री 9993652408】
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✍🏻पुराणों के अनुसार, ज्ञानवापी की उत्पत्ति तब हुई थी जब धरती पर गंगा नहीं थी और इंसान पानी के लिए बूंद-बूंद तरसता था तब भगवान शिव जी ने स्वयं अपने अभिषेक के लिए त्रिशूल चलाकर जल निकाला यही पर भगवान शिव जी ने माता पार्वती को ज्ञान दिया, इसीलिए, इसका नाम ज्ञानवापी पड़ा और जहां से जल निकला उसे ज्ञानवापी कुंड कहा गया। ज्ञानवापी का उल्लेख हिंदू धर्म के पुराणों मे मिलता है तो फिर ये मस्जिद के साथ नाम कैसे जुड़ गया? वापी का अर्थ होता है तालाब आचार्य पंडित नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि ज्ञानवापी का सम्पूर्ण अर्थ है ज्ञान का तालाब। काशी की छः वापियों का उल्लेख पुराणों मे भी मिलता है पहली वापी: ज्येष्ठा वापी, जिसके बारे मे कहा जाता है की ये काशीपुरा मे थी, अब लुप्त हो गई है। दूसरी वापी: ज्ञानवापी, जो काशी विश्वनाथ मंदिर के उत्तर मे है। तीसरी वापी: कर्कोटक वापी, जो नागकुंआ के नाम से प्रसिद्ध है। चौथी वापी: भद्रवापी, जो भद्रकूप मोहल्ले मे है। पांचवीं वापी: शंखचूड़ा वापी, लुप्त हो गई। छठी वापी: सिद्ध वापी, जो बाबू बाज़ार मे है और अब लुप्त हो गई। अठारह (18) पुराणों मे से एक लिंग पुराण मे कहा गया है:


"देवस्य दक्षिणी भागे वापी तिष्ठति शोभना।
तस्यात वोदकं पीत्वा पुनर्जन्म ना विद्यते।"


इसका अर्थ है: प्राचीन विश्ववेश्वर मंदिर के दक्षिण भाग में जो वापी है, उसका पानी पीने से जन्म मरण से मुक्ति मिलती है। स्कंद पुराण मे कहा गया है "उपास्य संध्यां ज्ञानोदे यत्पापं काल लोपजं क्षणेन तद्पाकृत्य ज्ञानवान जायते नरः। अर्थात इसके जल से संध्यावंदन करने का भी बड़ा फल है, इससे भी ज्ञान उत्पन्न होता है, पाप से मुक्ति मिलती है आचार्य पंडित नरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने बताया कि स्कंद पुराण में वर्णन आया है.....


स्कंद पुराण: - योष्टमूर्तिर्महादेवः पुराणे परिपठ्यते ।।
तस्यैषांबुमयी मूर्तिर्ज्ञानदा ज्ञानवापिका।।


अर्थात ज्ञानवापी का जल भगवान शिव का ही स्वरूप है। पुराण जो ना जाने कितनी सदियों पहले लिखे गए, उसमें भी ज्ञानवापी को भगवान शिव का स्वरूप बताया गया है। सारे पुराण, कह रहे है की ज्ञानवापी हिंदुओं से जुड़ा हुआ है लेकिन आज 2023 मे आप सुनते है की मस्जिद का नाम है ज्ञानवापी मस्जिद। मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमण से पहले काशी को अविमुक्त और भगवान शिव को अविमुक्तेश्वर कहा जाता था। काशी मे अविमुक्तेश्वर के स्वयं प्रकट हुए शिवलिंग की पूजा होती थी जिसे आदिलिंग कहा जाता था...
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