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आजादी अपूर्ण अभी

आजादी अपूर्ण अभी

कैसे कहूं मैं स्वतंत्र हूं ,
आजादी अपूर्ण अभी ।
पढ़ी वीरों की गाथाएं ,
दुष्ट मनसा न चूर्ण अभी ।।
घूम रहे हैं देशद्रोही ,
सुंदर सफेद पोशाक में ।
देशद्रोही देशभक्त बन ,
दम भर रखा है नाक में ।।
न सुरक्षित बहन बेटियां ,
आज सुरक्षित हम कहां ?
दहशत भरा चहुंओर है ,
कोई बता दे जाएं कहां ?
भरे पड़े हैं लूचे लफंगे ,
जहां देखो वहीं चोर है ।
सर्वत्र छाया घना अंधेरा ,
मिलता कहां अंजोर है ।।
देशभक्त कहे राष्ट्र मोर है ,
देशद्रोही कहे राष्ट्र मोर है ।
पहने लिबास सफेद सारे ,
समझ न आए कौन चोर है ।।
कहीं नहीं जीवन सुरक्षित ,
चुपके कब कौन आ जाए ।
न जाने किस रूप कौन ,
आकर करिश्मा दिखा जाए ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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