पिंजरेवाली मुनिया

पिंजरेवाली मुनिया

सुधीर श्रीवास्तव
कुछ दिनों पहले समाचार पत्रों में एक खबर पढ़ी।झारखंड के स्कूलों में ज्यादा दिन तक अनुपस्थित रहने वाले बच्चों को अब अन्य छात्र घर से ढूंढ कर लाएंगे।यह समाचार पढ़कर अपने बचपन के स्कूली जीवन की याद तरोताजा हो गई।
हमारे प्राइमरी स्कूल के हेड सर का शिक्षकों को सख्त निर्देश था कि तीन दिन से ज्यादा अनुपस्थित रहने वाले विद्यार्थी को घर से येन केन प्रकारेण पकड़कर स्कूल लाना है। इस पुनीत कार्य के निर्वहन हेतु विद्यालय के कुछ तगड़े और चतुर बच्चों की टीम बनाई गई थी। कार्यप्रणाली बड़ी सीधी थी।एक लड़का उस मोहल्ले या आसपास का होता जहाँ का छात्र लगातार अनुपस्थित रहता।चार मजबूत बच्चे उसके साथ रहते ताकि कोई आने में आनाकानी करे तो जोर-जबरदस्ती उठाकर लाने में दिक्कत न हो।क्लास का मॉनिटर होने के नाते ऐसे अवसरों पर मेरी उपस्थिति भी रहती।
हाजिरी हो चुकी थी।पांडे सर बहुत ध्यान से हाजिरी बही का निरीक्षण कर रहे थे।फिर बोले - "अरे,इ अखिलेशवा पाँच दिन से स्कूल नहीं आ रहा है।टिफिन के बाद उसको पकड़कर लाओ।"
टिफिन के बाद हमारी टीम अखिलेश के घर को चली। टीम में रामा,नंदकिशोर,बनारसी और रोहन थे।अखिलेश अपने घर के बगल में कुछ लड़कों के साथ कंचे खेल रहा था।टीम को देखते ही घर में भागा और भीतर से दरवाजा बंद कर लिया।टीम जोर-जोर से दरवाजा खटखटाने लगी। भीतर अखिलेश टीम के सदस्यों का नाम लेकर गालियाँ दे रहा था और अपनी माँ को दरवाजा खोलने से मना कर रहा था - "मइया गे!! केवाड़ी मत खोलिहे।"पर मइया भी बेटे की करतूतों से आजिज थी।दरवाजा खोली और टीम से बोली -"पकड़ के ले जा बउआ।हेडमास्टर साहब से बोलके खूब पीटवइह।दिनभर आवारा लड़कन के साथ खाली मटरगश्ती करता है।"
माँ ने जितनी आसानी से कहा उतनी आसानी से अखिलेश काबू में नहीं आया।रामा कबड्डी का माहिर खिलाड़ी था। उसने अखिलेश की टांग खींची तो धराशायी हो गया।दो लड़कों ने दोनों हाथ और दो लड़कों ने दोनों पैर पकड़े और पेंडुलम की तरह झूलाते घर से बाहर निकले।घर से कुछ दूर जाने के बाद पैर छोड़ दिए और घसीटते हुए ले चले। कुछ लोगों की भीड़ भी साथ-साथ चलने लगी।छोटा-मोटा जुलूस हो गया।कुछ लोगों ने इस काम में स्वयंसेवक की भूमिका भी निभाई और अखिलेश को स्कूल तक छोड़ने में अहम योगदान दिया।
भोला को पकड़कर लाना आसान साबित नहीं हुआ।पकड़े जाने पर पहले तो उसने पूरी ताकत से बनारसी की बाँह में दाँत गड़ा दिया और धींगामुश्ती करने लगा। टीम के चारों सदस्यों ने बहुत मशक्कत के बाद भोला को काबू किया और पारंपरिक विधि से टांग कर ले चले। भोला की माँ को यह सब जरा भी पसंद नहीं आया।चिल्लाने लगी -"हम्मर बेटा स्कूल जाएगा कि नहीं,पढ़ेगा कि नहीं,हम समझेंगे।एकरा से मास्टर मुँहझौंसा के का मतलब?" लेकिन टीम के आगे एक न चली। भोला को भी स्कूल पहुँचाया गया।
आज पांडे सर फिर बोल रहे थे-"अरे,दस दिन से बेसी हो गया।'पिंजरे वाली मुनिया' स्कूल काहे नहीं आ रहा है?"फिर मेरी तरफ मुखातिब होकर बोले-"तुम्हारा दोस्त है इसीलिए बचा रहे हो।जाओ आज उसको पकड़कर लाओ।"
विजय उर्फ पिंजरेवाली मुनिया नाटा सा,गोरा-चिट्टा बहुत अच्छा लड़का था।मुझसे ही नहीं अपने अच्छे व्यवहार के कारण उसकी क्लास के ज्यादातर लड़कों से अच्छी दोस्ती थी।संगीत के क्लास में वह 'तीसरी कसम' फिल्म का गाना 'चलत मुसाफिर मोह लिया रे पिंजरेवाली मुनिया' बड़े सुर में गाता था।इसी कारण उसका नाम 'पिंजरे वाली मुनिया' पूरे स्कूल में प्रसिद्ध हो गया था।
विजय का घर ढूंढने में थोड़ी परेशानी हुई। तेलिया स्कूल (वैश्य उच्च विद्यालय) के पीछे एक गली 'मलिया महादेव' मंदिर की तरफ जाती थी।उस गली के भीतर दाहिनी तरफ एक और पतली गली जाती थी जिसे राजपूताना गली कहा जाता।उसी गली के आखिरी छोर पर विजय का घर था। घर के भीतर घुसे तो एक अजीब नजारा दिखा। विजय सिर मुड़ाये बैठा था। हमें देखकर उसकी माँ रोने लगी।उसका छोटा भाई और एक बहन जो अभी चलना सीख रही थी,देखा देखी रोने लगे।पता चला विजय के पिता का ग्यारह दिन पहले स्वर्गवास हो गया।मीना बाजार में उनकी साइकिल रिपेयरिंग की दुकान थी।उसी दुकान की कमाई से विजय के परिवार का गुजारा होता था। मैंने धीरे से पूछा- "स्कूल कब आओगे?" वह कुछ नहीं बोला।अजीब सी नजर से मुझे देखता रहा।उस नज़र में असीम वेदना थी। मुझे भी रोना आ गया।घर, संसार, खर्च, गुजारा जैसी बातों की उस उम्र में कोई जानकारी नहीं थी।फिर भी समझ रहा था,विजय अब स्कूल नहीं जा सकेगा।आठ-नौ साल के बच्चे के कंधे पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आने वाली थी।
स्कूलों से ज्यादा दिन तक अनुपस्थित रहने वाले छात्रों को छात्रों द्वारा ही घर से बुलाए जाने की झारखंड सरकार की पहल प्रशंसनीय है।बस, ईश्वर से यही प्रार्थना है कि उन्हें कोई 'पिंजरे वाली मुनिया' न मिले। 
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