जिओ और जीने दो के प्रणेता भगवान महावीर स्वामी

जिओ और जीने दो के प्रणेता भगवान महावीर स्वामी

सत्येंद्र कुमार पाठक
भगवान महावीर का जन्म बिहार के वैशाली जिले के कुंडग्राम में इक्ष्वाकु वंशीय राजा सिद्धार्थ की पत्नी त्रिशला के गर्भ से छात्र शुक्ल त्रयोदशी 599 ई. पू. में अवतरित हुए थे । चौबीसवें तीर्थंकर महावीर को वीर, अतिवीर, वर्धमान, सन्मति महावीर स्वामी , महावीर वर्द्धमान कहा जाता है । 72 वर्षीय भगवान महावीर स्वामी को बिहार के नालंदा जिले का पावापुरी में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को मोक्ष प्राप्ति हुई थी । भगवान महावीर तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये। 12 वर्षो की कठिन तपस्या के बाद केवलज्ञान प्राप्त के पश्चात् समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया। 72 वर्ष की आयु में पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई। महावीर स्वामी के कई अनुयायी में राजा बिम्बिसार, कुणिक और चेटक थे। जैन ग्रन्थों के अनुसार भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल की हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में भगवान महावीर ने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक और विश्व को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) , ब्रह्मचर्य ,अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह सिद्धान्त दिए। महावीर का 'जियो और जीने दो' का सिद्धान्त है।श्वेतांबर परम्परा के अनुसार महावीर स्वामी का विवाह यशोदा से हुआ था । महावीर स्वामी की भर्या यशोदा की पुत्री प्रियदर्शिनी के विवाह राजकुमार जमाली के साथ हुआ था ।जैन ग्रन्थों के अनुसार केवल ज्ञान प्राप्ति के बाद ११ गणधर में प्रथम इंद्रभूति थे। जैन ग्रन्थ, उत्तरपुराण के अनुसार महावीर स्वामी ने समवसरण में जीव आदि सात तत्त्व, छह द्रव्य, संसार और मोक्ष के कारण तथा उनके फल का नय आदि उपायों का वर्णन किया था।भगवान महावीर का पाँच व्रत में सत्य ― सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है। अहिंसा – इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पाँच इंद्रीयों वाले जीव) है उनकी हिंसा मत कर, उनको उनके पथ पर जाने से न रोको। उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो। उनकी रक्षा करो। यही अहिंसा का संदेश भगवान महावीर अपने उपदेशों से हमें देते हैं। अचौर्य - दुसरे के वस्तु बिना उसके दिए हुआ ग्रहण करना जैन ग्रंथों में चोरी कहा गया है। अपरिग्रह – परिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। यही संदेश अपरिग्रह का माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाहते हैं और ब्रह्मचर्य- महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। जो पुरुष स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं। जैन ग्रंथों में दस धर्म में पर्युषण पर्व है । भगवान महावीर ने धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, क्षमा पर सबसे अधिक जोर दिया। त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार का महत्वपूर्ण कहा है । तीर्थंकर महावीर का केवलीकाल ३० वर्ष का था। उनके के संघ में १४००० साधु, ३६००० साध्वी, १००००० श्रावक और ३००००० श्रविकाएँ थी। 72 वर्षीय भगवान महावीर ने ई . पू. 527 में बिहार के नालंदा जिले के पावापुरी में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया। पावापुरी में एक जल मंदिर स्थित महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। आचार्य समन्तभद्र विरचित “स्वयंभूस्तोत्र” एवं युक्तानुशासन और मुनि प्रणम्य सागर की रचना वीरष्टकम , पद्मकृत महावीर रास 18वी सदी में भगवान महावीर को समर्पित है। भगवान महावीर की प्राचीन प्रतिमाओं के देश और विदेश के संग्रहालयों , महाराष्ट्र के एल्लोरा गुफाओं में भगवान महावीर की प्रतिमा , कर्नाटक की बादामी गुफाओं में भी भगवान महावीर की प्रतिमा , मध्यप्रदेश के पटनागंज में पद्मासन मुद्रा में भगवान महावीर की विशालतम ज्ञात प्रतिमा , दिल्ली स्थित महरौली में अहिंसा स्थल , राजस्थान का करौली , तमिलनाडु के थिराकोइल , कर्नाटक के बादामी गुफा में 23 वें तीर्थंकर एवं 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी , बिहार के पावापुरी के जल मंदिर में भगवान महावीर की प्रतिमा स्थित है।
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