अपना परिचय मैं क्या दूं ?

अपना परिचय मैं क्या दूं ?

जो परिचय मेरा मुझसे पूछें,
उनको उत्तर मैं क्या दूं ?
जो पाते कहते लोग मुझे,
अपना परिचय मैं क्या दूं ?

कृष्ण हमारा नाम भले,
पर माखनचोर हूं कहलाया ;
छलिया लोगों ने नाम दिया,
और मैं रणछोड भी कहलाया ।

माखन चुराता, झूठ बोलता,
छल भी करता आया हूं ;
करने धर्म की स्थापना
मैं इस धरा पर आया हूं ।
धर्म सत्य है इस धरा पर,
इसके सिवा कुछ सत्य नहीं ;
जो धर्म न पालन करता हो,
वह पालन करता सत्य नहीं ।
धर्म विजय उद्देश्य हमारा,
धर्म की रक्षा मैं करता ;
न्याय का पालन धर्म समझ
निर्दोष की रक्षा मैं करता ।
धर्म विजय की ही खातिर
मैं झूठ बोलता आया हूं ;
और धर्म की रक्षा की खातिर
मैं छल भी करता आया हूं ।
योगी भी हूं, भोगी भी हूं,
सुंदरता का प्रेमी हूं ;
प्रेम पुजारी बनकर हरदम,
प्यार सबों से करता हूं ।
आवारा, पागल, दीवाना –
कुछ इतना सुंदर नाम मिला;
सनकी, बहरा, गूंगा बना,
पर नहीं किसी से हमें गिला ।

प्रेमी, रसिया, छलिया कहा,
योद्धा, लडाका कह दिया ;
जिसने जो पाया कह डाला,
हमने सब कुछ स्वीकार किया ।

मैं काम कला में बन प्रवीण,
इस जीवन का सुख भोग किया ;
और जीवन के हर क्षेत्र में
हर नारी का सम्मान किया ।

यूं तो जीवन में मैं कभी
किसी पर क्रोध नहीं करता ;
पर दोषी को दंडित करने को
मैं उग्र रूप धारण करता ।

गुनाह की माफी जो मांगें,
मैं माफ उन्हें कर देता हूं ।
पर चाल चले जो कोई अगर,
तो माफ न उनको करता हूं ।

एक भला बेचारा आदमी
मूर्ख और बेवकूफ भी कहलाया ;
देवता आदमी कहलाया
और पागल भी मै कहलाया ।

वाक्युद्ध लडा मैंने, और
कलम से लडता आया हूं ;
हथियार चलाना मैं सीखा
जीवन भर लडता आया हूं ।

जिसका भी स्वार्थ नहीं सधता,
वह मेरी शिकायत करता है ;
जिसकी भी बात नहीं मानूं,
वह मेरी निंदा करता है ।

व्यंग्य बाण सहा लोगों का,
अपना खुद उपहास सहा ;
नहीं शिकायत हमें किसी से,
कुछ नहीं किसी से कभी कहा ।

लोगों ने गाली हमें दिया,
रोडा भी हमपर बरसाया ;
कई वार हुए मेरे तन पर,
यह थी सब ईश्वर की माया ।

ईर्ष्या नफरत सब झेल के भी
मैं प्यार सबों को देता हूं,
कष्ट भले मैं खुद झेलूं,
लोगों का दुख हर लेता हूं ।

मौत के साये में पलकर
नन्हे बालक से हुआ जवान,
षड्यंत्रों के बीच पला पर
बनी रही है मेरी शान ।

अन्यायी अत्याचारी से लडा
अकेला कई लोगों से लडा,
आगे बढकर भी मैं लडा
और पीछे हटकर भी लडा ।

तन से, मन से, धन से हरदम
राक्षस से लडता मैं आया,
कई जंग भले जीते हमने
डरपोक और कायर कहलाया ।

धर्म नियम की व्याख्या कर
मैं गीता का उपदेश भी देता,
युद्ध की शिक्षा मैं देता
पर शांति का संदेश देता ।

न्यायविद और शिक्षाविद
की भी उपाधि मैं पाया,
कई लोगों ने कई नाम दिये
विद्वान कवि भी कहलाया ।

अध्यात्म की चर्चा मैंने की
अध्यात्म गुरू भी कहलाया,
योगी का जीवन मैं जीता
और योगीराज भी कहलाया ।

ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, लोभ को,
घृणा, मोह, भय, अहंकार को,
पूर्वाग्रह को, पक्षपात को,
त्यागा इन मानव दुर्गुणों को ।

व्याख्या कनून की करता, और
मानवाधिकार कि रक्षा करता हूं,
लोगों को न्याय मिले इस खातिर
हरदम न्यायालय में लडता हूं ।

कर्त्तव्य निभाने मैं आया
कर्त्तव्य निभाता जाउंगा,
जो चहें मुझको लोग कहें
अपना कर्त्तव्य निभाउंगा ।

मामूली – सा इन्सान हू मैं
इन्सान ही बनकर जीता हूं,
प्यार की वर्षा सबपर करता
प्रेम का रस मैं पीता हूं ।

तन- मन लचीला है मेरा
मैं सबकी बातें सुनता हूं,
पर करता केवल वही सदा
जिसको मैं उचित समझता हूं ।

इन्सानी आदर्शों की स्थापना
अपने जीवन से करता हूं,
जो चहता कि लोग करें
उनका पालन खुद करता हूं ।

कृष्ण बल्लभ शर्मा “योगीराज”
(“इतिहास रचयिता” नामक पुस्तक से उद्धृत)
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