संकल्प

संकल्प

एक दिन बाती ऩे सोचा, मैं खुद को जलाती हूँ,
तेल अपने दीपक से लेती, तम को मिटाती हूँ।
अंधेरों ऩे किसी साजिश से,आँधियों से दोस्ती की,
और उन्होंने बेवज़ह ही, बार-बार मुझको बुझाया।
आज मैंने दिल मे अपने, यह इरादा कर लिया है,
रोशनी को यह जता दूँ, आँधियों की चाल क्या है?
रात का नीरव अँधेरा, उसमे बाती जल रही थी,
तम मिटाने के लिए, खुद से ही वह लड़ रही थी।
आँधी का एक झोंका, और बाती उड़ चली थी।
फूँस पर जाकर गिरी वह, आग वहां पर लग गई।
सोचा था बाती बुझ जाएगी, अंधेरों का राज होगा,
आज तो शोला बनी, अंधेरों को निगल रही थी।
जितना चाहा आँधियों ऩे, मिटाना वजूद आग का,
वह बढी और बढ़ती गई, फिर दावानल बनी।
इस तरह मिट गया जब, वजूद अंधकार का,
आँधियों का भी गुरुर तब, इस धरा से मिट गया।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
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