मस्जिदों के लिए ‘वक्फ बोर्ड’ है, तो मंदिरों के लिए ‘हिन्दू बोर्ड’ क्यों नहीं ? - अधिवक्ता विष्णु जैन, सर्वाेच्च न्यायालय

मस्जिदों के लिए ‘वक्फ बोर्ड’ है, तो मंदिरों के लिए ‘हिन्दू बोर्ड’ क्यों नहीं ? - अधिवक्ता विष्णु जैन, सर्वाेच्च न्यायालय

मंदिरों का प्रबंधन उचित नहीं हो रहा, ऐसा कारण बताते हुए सरकार ने बडे-बडे मंदिरों का अधिग्रहण किया है । जिस प्रकार सरकार ने मस्जिदों-मदरसों के संरक्षण के लिए ‘वक्फ बोर्ड’ की स्थापना की है; उसी प्रकार मंदिरों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए सरकार मंदिरों का अधिग्रहण न कर ‘हिन्दू बोर्ड’ स्थापित कर उसके पास मंदिर क्यों नहीं सौंपती? इस बोर्ड में हिन्दू धर्म से संबंधित शंकराचार्य, महामंडलेश्वर मठाधिपति आदि अधिकारी व्यक्तियों को स्थान देकर उन्हें ‘पब्लिक सर्वेंट’ का दर्जा दिया जाए, ऐसी मांग काशी स्थित ‘ज्ञानवापी’ के विषय में संघर्ष करनेवाले सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने पत्रकार परिषद में की । इस पत्रकार परिषद में हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे भी उपस्थित थे । जळगांव में हुई राज्यस्तरीय ‘महाराष्ट्र मंदिर-न्यास परिषद’ की पृष्ठभूमि पर आयोजित पत्रकार परिषद आयोजित की गई ।

अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने आगे कहा, वर्ष 1995 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने मुसलमानों के तुष्टीकरण के लिए ‘वक्फ कानून’ नामक असंवैधानिक कानून बनाया । इसके आधार पर वक्फ मंडल को ‘पब्लिक सर्वेंट’ का लोक सेवक का दर्जा दिया गया । मुसलमानों के अतिरिक्त अन्य किसी भी समाज को ‘पब्लिक सर्वेंट’ का दर्जा नहीं दिया गया है । वक्फ मंडल यदि किसी भी संपत्ति पर दावा करता है, तो उस संपत्ति का सर्वे किया जाता है । इसके माध्यम से वक्फ मंडल को उस संपत्ति को सीधे ‘वक्फ संपत्ति’ के रूप में रजिस्ट्रार के पास पंजीकृत करने का अधिकार है । ऐसा करते समय उस भूमि के स्वामी को सूचित करने का भी उसमें प्रावधान नहीं है । वर्ष 2005 में वक्फ मंडल ने ताजमहल को भी ‘वक्फ संपत्ति’ घोषित किया है, ऐसा अधिवक्ता जैन ने कहा ।

सरकारी उद्योगों का निजीकरण तो फिर हिन्दुओं के मंदिरों का सरकारीकरण क्यों ?- रमेश शिंदे, राष्ट्रीय प्रवक्ता, हिन्दू जनजागृति समिति

सनातन धर्म के विरोध में पूर्व से चले आ रहे आघातों का सत्र आज भी जारी है । मंदिर केवल देवालय ही नहीं, विद्यालय भी हैं, न्यायालय भी हैं, और आरोग्यालय भी हैं । पूर्व के काल में मंदिरों के माध्यम से विश्वविद्यालय चलाए जाते थे । इससे हिन्दुओं को विद्या प्रदान की जाती थी । मुगल आक्रमणकारियों ने मंदिरों का विध्वंस कर वहां का धन लूटा और मंदिर अगर धनवान रहे तो वहां ज्ञान संपदा जारी रहेगी और मिशनरियों की कान्वेंट पाठशालाएं नहीं चलेंगी । हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन नहीं किया जा सकेगा, इस उद्देश्य से ब्रिटिशों ने मंदिरों के धन पर नियंत्रण पाने के लिए मंदिरों का सरकारीकरण करना प्रारंभ किया । 1947 में भारत स्वतंत्र हो गया; परंतु मंदिर कभी स्वतंत्र नहीं हुए । सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के विरोध में जाकर आज ‘सेक्यूलर’ सरकार ने 4 लाख मंदिर अपने नियंत्रण में लिए हैं । एक ओर सरकारी उद्योगों का निजीकरण किया जा रहा है, तो फिर हिन्दू मंदिरों का सरकारीकरण क्यों ? ऐसा प्रश्न हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री रमेश शिंदे ने उपस्थित किया ।
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