समाज के कठोर यथार्थ को उसी रूप में प्रस्तुत करती हैं बाँके की कहानियाँ:-डा अनिल सुलभ

समाज के कठोर यथार्थ को उसी रूप में प्रस्तुत करती हैं बाँके की कहानियाँ:-डा अनिल सुलभ

  • साहित्य सम्मेलन में कहानी-संग्रह 'पुल के नीचे' का हुआ लोकार्पण, आयोजित हुई लघुकथा गोष्ठी ।
पटना, ८ फरवरी। समाज के कठोर यथार्थ को, उसके उसी नंगे रूप में प्रस्तुत करती हैं बाँके बिहारी की कहानियाँ। उनकी कुछ कहानियाँ प्रसिद्ध नाटककार विजय तेंदुलकर के बहुचर्चित नाटक 'सखाराम बाइंडर' की नायिका का स्मरण दिलाता है, जो पुरुषों के कमजोर नस पर पैर रखती और उनपर शासन करती है। बाँके की कहानियाँ विद्रूपताओं से भविष्य के सत्य को निकालने की चेष्टा करती हैं।
यह विचार, बुधवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, चर्चित स्तंभकार और लेखक ई बाँके बिहारी साव के कहानी-संग्रह 'पुल के नीचे' का लोकार्पण करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि पुस्तक की प्रायः सभी कहानियों में उनकी कथा-वस्तु,प्रसंग और पात्रों के खुरदरेपन की भाँति लेखक की भाषा में भी वही खुरदरापन दिखाई देता है, 'नंगे' को 'नंगा' कहने जैसा।
अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि बाँके जी की कहानियाँ सामाजिक कुरुतियों पर कड़ा प्रहार करती हैं, जिन्हें पढ़ते हुए, आँखों में आँसु आ जाते हैं।
पुस्तक पर अपनी राय रखते हुए, वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि बाँके बिहारी अपने व्यक्तित्व और कृतित्व विलक्षण है। ये मूल रूप से व्यंग्यकार हैं। इमकी विशेषता यह है कि ये पाठकों को झकझोर देते हैं। इनकी कहानियाँ समस्या मूलक हैं, जो पाठकों को सवालों पर सोंचने के लिए विवश करती हैं, एक संदेश देती हैं।
सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा अशोक प्रियदर्शी, डा किशोर सिन्हा, डा ध्रुव कुमार, डा जनार्दन सिंह, आराधना प्रसाद, बच्चा ठाकुर, प्रो रमेश पाठक, डा अर्चना त्रिपाठी, आनन्द मोहन झा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित लघुकथा -गोष्ठी में डा शंकर प्रसाद ने 'अंत हीन प्रतीक्षा', डा पुष्पा जमुआर ने 'ये बोलती आँखें', डा पूनम आनन्द ने 'पतंग', विभा रानी श्रीवास्तव ने 'परस्परवाद', शमा कौसर 'शमा' ने 'शहीद', डा रमाकान्त पांडेय ने 'आदमी का बच्चा', डा मीना कुमारी परिहार ने 'अंगूठी मेन नगीना', ई अशोक कुमार ने 'कर्म का फल', कृष्णा मणिश्री ने “विद्रोह”, अरविंद कुमार वर्मा ने 'त्रासदी', अर्जुन प्रसाद सिंह ने 'अहसास', नरेंद्र कुमार ने 'सूखते रिश्ते', चितरंजन भारती ने 'अरमान', अजित कुमार भारती ने 'भीखमंगा का घर' शीर्षक से अपनी लघुकथा के पाठ किए।
मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। वरिष्ठ कवि जय प्रकाश पुजारी, सदानन्द प्रसाद, ई आनन्द किशोर मिश्र, डा सीमा रानी, चंदा मिश्र, डा रणधीर मिश्र, डा अमरनाथ प्रसाद,, वंदना प्रसाद, पूजा ऋतुराज, कमल किशोर 'कमल', तनुप्रिया, मिथिलेश सिंह, प्रणय कुमार सिन्हा, अप्सरा मिश्र, विश्वनाथ चौधरी, चंद्रशेखर आज़ाद, विनय चंद्र, रामाशीष ठाकुर,सच्चिदानंद सिंहा, अशोक कुमार पूर्वे,देव कुमारी देवी, अरुण कुमार सिंह, आदि प्रबुद्धजन समारोह में उपस्थित थे।
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