शत-शत वंदन हीरा बा
१०० वर्षों की जीवन यात्रा आप पूरी कर पाई,प्रधानमंत्री की मां होकर भी घमंड़ ना दिखाई।
अनुशासित ज़िंदगी जिकर सबको है समझाई,
दामोदरदास मूलचन्दजी संग विवाह यें रचाई।।
सदा रहेंगे भारतीय आपके राजमाता आभारी,
दिया ऐसा कोहिनूर जिन्होंने हिन्द को हमारी।
हीरा कहें या ध्रुव-तारा अथवा शेर हिन्दुस्तानी,
शत शत वन्दन करतें है चरणों में हम तुम्हारी।।
झेली कई वो कष्ट परेशानी पर हिम्मत न हारी,
वन्दनीय मां को नमन करें आज दुनियां सारी।
क्या लिखूं उनके बारे में कलम ना चलें हमारी,
हीराबेन नाम जिसका प्रभु को हो गयी प्यारी।।
मां चरणों में जन्नत है वह होती है ईश्वरीय रुप,
तपस्वी समान यात्रा उसकी बचाती सर्दी-धूप।
असंभव को संभव बना देता उसी का आशीष,
बेटी बहन पत्नी और मां ऐसे आपके बहुरूप।।
कभी किसे भी न सताया चाहें पक्षी या इंसान,
पंच-तत्वों में विलीन हो गई वो हीराबा महान।
काम करों बुद्धि से और जीवन जियो शुद्धि से,
ऐसे विचार उनके थें जिसे याद करेगा जहान।।
 रचनाकार
रचनाकार  गणपत लाल उदय, अजमेर राजस्थान
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