भगवान सूर्य का अवतरणोत्सव अचलासप्तमी

भगवान सूर्य का अवतरणोत्सव अचलासप्तमी

सत्येन्द्र कुमार पाठक 
सनातन धर्म एवं सौर सम्प्रदाय के विभिन्न ग्रंथों में अचला सप्तमी का महत्वपूर्ण उल्लेख मिलता है । माघ शुक्ल सप्तमी को अचला सप्तमी, रथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी, भानु सप्तमी, अर्क सप्तमी और सूर्य अवतरणोत्सव आदि नामों से किया गया है । भगवान सूर्य की उपासना कर पुत्र प्राप्ति, पुत्र रक्षा तथा पुत्र अभ्युदय के लिए और चतुर्दिक विकास के लिए अचला सप्तमी का व्रत किया जाता है । स्कन्द पुराण के अनुसार भगवान सूर्य प्रथम बार रथ पर माघ मास शुक्ल सप्तमी को आरूढ़ हुए थे जिसे रथसप्तमी कहा गया हैं । अचला सप्तमी तिथि को दिया हुआ दान और यज्ञ सब अक्षय माना जाता है । भविष्य पुराण के अनुसार सप्तमी तिथि को भगवान् सूर्य का आविर्भाव हुआ था । भगवान सूर्य अंड के साथ उत्पन्न होकर मार्तण्ड के रूप में ब्रह्मांड में प्रकाश की वृद्धि की है ।भविष्यत पुराण में उल्लेख किया गया है कि भगवान श्रकृष्ण कहते है– राजन ! शुक्ल पक्षकी सप्तमी तिथि को यदि आदित्यवार (रविवार) हो तो उसे विजय सप्तमी कहते है । वह सभी पापोका विनाश करने वाली है । उस दिन किया हुआ स्नान ,दान्, जप, होम तथा उपवास आदि कर्म अनन्त फलदायक होता है । जो उस दिन फल् पुष्प आदि लेकर भगवान सूर्यकी प्रदक्षिणा करता है । वह सर्व गुण सम्पन्न उत्तम पुत्र को प्राप्त करता है ।नारद पुराण में माघ शुक्ल सप्तमी को “अचला व्रत” एवं “त्रिलोचन जयन्ती” , रथसप्तमी , भास्कर सप्तमी” कहा गया है । आक और बेर के सात-सात पत्ते सिर पर रखकर स्नान करने से सात जन्मों के पापों का नाश होता है । इसी सप्तमी को ‘’पुत्रदायक ” व्रत भी बताया गया है । सभगवान सूर्य ने कहा है - माघ शुक्ल सप्तमी को विधिपूर्वक मेरी पूजा करेगा, उसपर अधिक संतुष्ट होकर मैं अपने अंश से उन्सका पुत्र होऊंगा’ । इसलिये उस दिन इन्द्रियसंयमपूर्वक दिन-रात उपवास करे और दूसरे दिन होम करके ब्राह्मणों को दही, भात, दूध और खीर आदि भोजन करावें ।अग्नि पुराण में उल्लेख हैं कि माघ मासके शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथिको अष्टदल अथवा द्वादशदल कमल का निर्माण करके उसमें भगवान् सूर्यका पूजन करने से मनुष्य शोकरहित हो जाता है । चंद्रिका में लिखा है “सूर्यग्रहणतुल्या हि शुक्ला माघस्य सप्तमी। अरुणोदगयवेलायां तस्यां स्नानं महाफलम्॥ अर्थात माघ शुक्ल सप्तमी सूर्यग्रहण के तुल्य होती है सूर्योदय के समय इसमें स्नान का महाफल होता है । नारद पुराण के अनुसार अरुणोदयवालायां शुक्ला माघस्य सप्तमी ॥ प्रयागे यदि लभ्येत सहस्रार्कग्रहैः समा॥ अयने कोटिपुण्यं स्याल्लक्षं तु विषुवे फलम् ॥११२॥चंद्रिका में विष्णु ने लिखा है “अरुणोदयवेलायां शुक्ला माघस्य सप्तमी ॥ प्रयागे यदि लभ्येत कोटिसूर्यग्रहैः समा अर्थात माघ शुक्ल सप्तमी यदि अरुणोदय के समय प्रयाग में प्राप्त हो जाए तो कोटि सूर्य ग्रहणों के तुल्य होती है ।मदनरत्न में भविष्योत्तर पुराण का कथन है की “माघे मासि सिते पक्षे सप्तमी कोटिभास्करा। दद्यात् स नानार्घदानाभ्यामायुरारोग्यसम्पदः॥ अर्थात माघ मास की शुक्लपक्ष सप्तमी कोटि सूर्यों के बराबर है उसमें सूर्य स्नान दान अर्घ्य से आयु आरोग्य सम्पदा करते है ।
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