उम्र ढल रही है यहां धीरे-धीरे
ठण्ड बढ़ रही है यहां धीरे-धीरे
उम्र ढल रही है यहां धीरे-धीरे
सिहरन का एहसास होने लगा है
हवा चल रही है यहां धीरे -धीरे
स्वेटर व टोपी मफलर निकालो
बर्फ गल रही है यहां धीरे-धीरे
बड़ी दूर जाकर तुम तो बसे हो
कमी खल रही है यहां धीरे-धीरे
दिन रात खुलती यादों की गठरी
अगन जल रही है यहां धीरे-धीरे
तन्हाई घर में है डेरा जमाए
कथा गढ़ रही है यहां धीर-धीरे
बहुत देर से जय दिल में तुम्हारी
छुअन पल रही है यहां धीरे-धीरे
*
~जयराम जय
'पर्णिका',बी -11/1,कृष्ण विहार,आ.वि.कल्याणपुर,कानपुर-208017 (उ०प्र०)
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