विनाश की घड़ी
ऋचा श्रावणी
युद्ध छिड़ा है चारो ओर
अपने विवेक से काम करना
महामारी ने सबको तोड़ा
और युद्ध ने विनाश की ओर मुख मोड़ा
अर्थव्यवस्था में सब जगह मंदी आई
महंगाई, बेरोजगारी और भुखमरी ने ली अंगड़ाई
त्राहिमाम सब ओर मचा हैं
घनघोर अंधेरा है छाया
स्वार्थ का बीज अंकुरित हो रहा हैं
हे प्रभु ये तेरी कैसी माया
सबको अपना शक्ति प्रदर्शन करना है
हम किसी से कम नहीं
यह अहम जताना है
जब 🪔 बुझता है
तो बुझने से पहले फकफक्कता हैं
यह प्रलय की घड़ी है
हमें हिम्मत नहीं हारना हैं
जब धर्म की स्थापना होती हैं
तो अधर्म का सर्वनाश होना है
वक्त बुरा ज़रूर है
इसको भी कट जाना है
यह युग परिवर्तन का दौर हैं
नए युग का आना है
नवीन विश्व का निर्माण होगा
प्रेम सद्भाव वाले मनुष्य का फिर सम्मान होगा ।
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