करना होगा रण

करना होगा रण

--:भारत का एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र अणु
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होता भी है कहीं
सोने का मृग
सीता धोखा खाई थी
अपने खुले दृग
रूप जाल के भ्रम में
बनवास के क्रम में
मोहित किया सीता को नीच
रावण का सहचर
धूर्त मायावी मारीच
जब उसे सीता देखी
और बघारने लगी शेखी
राम ने बहुत समझाया
ये जो देख रही हो न प्रिया
है ये सब राक्षसी मया
पर सीता समझ न पाई
राम पर और दबाव बनाई
कहीं की मुझे यही चाहिए
चाहे जैसे हो लाने शीघ्र जाइए
कहा राम ने रखना अपना ख्याल
मै आता हूं लेकर इसका ख़ाल
अपना धनुष बाण उठाया
वो देखकर छलांग लगाया
जंगल जंगल खूब छकाया
दिखता था निकट तो कभी दूर
किया राम को परेशान भरपूर
जब खुद को राम न पाए रोक
एक बाण में पहुंचाए यमलोक
फिर मारीच ने दूसरी मया रची
और जोर से हा लक्ष्मण पुकारा
सीता धोखा खा गई दुबारा
कहीं की लक्ष्मण तुम जाओ
और राम का प्राण बचाओ
लगता है राम पर आ गया है संकट
शायद मिल गया टक्कर का अखेटक
लक्ष्मण ने भी खूब समझाया
भाभी ये है निशाचर की माया
जिस पर वो बहुत खरी खोटी सुनाई
आखिर तुम ठहरे राम के सौतेले भाई
ठीक है तुम मत जाओ
पर ये चेहरा भी मुझे मत दिखाओ
सुन सीता की बात
लगा लक्ष्मण को आघात
उपस्थित उलट काल देखा
चलते बने खीच लक्ष्मण रेखा
इधर रावण था बैठा तैयार
बना मुनि का वेष
लक्ष्मण के जाते ही वह
सामने आ करने लगा उपदेश
तुम पाई हो अच्छी भली शिक्षा
तुम दे सकती हो अग्नि परीक्षा
मै आया हूं तुमसे मांगने भिक्षा
सुनकर सीता बौराई
देने को भिक्षा थाल सजाई
और लक्ष्मण रेखा से बाहर आई
उसे विवश देख कर रावण
किया घोर गर्जन
कहा कि मै रावण हूं रावण
सीता मै करने आया अपहरण
तुम तोड़ चुकी हो अपनी मर्यादा
अब रहोगी मेरे संग सदा सर्वदा
सुन सीता चिल्लाई
पर कोई भी युक्ति काम न आई
उसे वो उठा ले गया
बहुत बड़ा कलंक दे गया
सीता आज भी छली का रही है
बस रोती बिलखती चली जा रही है
अपनी स्मिता के लिए
हृदय की सीता के लिए
करना होगा हम सब को रण
कि अब और न हो सीता का अपहरण
----------------------------------------वलीदाद,अरवल(बिहार)८०४४०२
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