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आयुर्वेद और चिकित्सा पद्धति का जनक है भगवान धन्वंतरि

आयुर्वेद और चिकित्सा पद्धति का जनक है भगवान  धन्वंतरि 

जहानाबाद । राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस पर सच्चिदानंद शिक्षा एवं समाज कल्याण संस्थान की ओर से आयोजित आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि जयंती के अवसर पर भारतीय विरासत संगठन के अध्यक्ष साहित्यकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि आयुर्वेद और चिकित्सा पद्धति के जनक भगवान धन्वंतरि है ।भगवान विष्णु के 17 वें अवतार तथा ब्रह्माण्ड के प्रथम चिकित्सक “धन्वन्तरी” की याद में मनाया जाता है । वस्तुतः स्वास्थ्य अमूल्य धन है । समुन्द्रं मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि ने साथ अमृत का कलश व आयुर्वेद लेकर कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी में प्रकट हुए थे । धनतेरस के दिन से दीपावली मनाई जाती है और मां लक्ष्मी के स्वागत की तैयारियां की जाती हैं। लक्ष्मी के पैरों एवं भगवान धन्वंतरि के समक्ष शाम को 13 दिए जला कर माता लक्ष्मी एवं भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। सौभाग्य सूचक के तौर पर धनतेरस के दिन दिन लोग सोना या चांदी या बर्तन , जमीन, कार खरीदने, निवेश करने और नए उद्योग की शुरूआत के लिए शुभ माना जाता है। दक्षिण भारत में इस दिन गायों को खूब सजाया जाता है और फिर उनकी पूजा की जाती है। गायों को लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। रामायण के अनुसार लक्ष्मणजी मेघनाथ के शक्तिवाण से मूर्छित हो जीवन –मरण से जूझ कर रहे थे तब सुषेन बैद ने हनुमानजी को जड़ी बूटी लाने के लिए कहा था । धन्वन्तरी द्वारा देवताओ और दानवो के बीच हुये समुद्र मंथन मे हाथ मे औषध कलश लेकर निकालने के बाद मानवीय जीवन को आरोग्य केलिए मंत्र दिया गया था । 12 ई. पू . मे चरक से लेकर कुसुमांजली तक चिकित्सा विज्ञानी हुये जिनहे हम इस चिकित्सा प्रणाली के पुरौधा हैं । मेहरगढ़ मे हुई खुदाई मे मिले प्रमाणो के आधार पर यह प्रमाणित है। अठाहरवीं शताब्दी से पहले ना तो विश्व में ऐलोपैथी नाम की कोई चिकत्सा पद्धति थी और ना ही होमोपैथी थी। योरूप में चिकित्सा विज्ञान नहीं के बराबर था जब कि चिकित्सा क्षेत्र में भारत के प्राचीन ग्रंथ सक्षम, विस्तरित तथा उच्च कोटि के थे। पौराणिक वैद्य धन्वन्तरी के अतिरिक्त ईसा से पाँच शताब्दी पूर्व सुश्रुत और ईसा के दो सौ वर्ष पश्चात शल्य चिकित्सक चरक और अत्रेय के नाम मानवी चिकित्सा के क्षेत्र में मुख्य हैं। चरक और सुश्रुत विश्व के प्रथम फिज़ीशियन और सर्जन थे जिन्हों ने आधुनिक चिकित्सा पद्धति की नींव रखी। सुश्रुत को प्रेरणाधन्वन्तरी से प्राप्त हुई थी। सुश्रुत ने संस्कृत में रोगों की जाँच के बारे में ग्रंथ लिखा तथा उन के उपचार भी बताये। उन की कृति में शल्य चिकित्सा, हड्डियों की चिकित्सा, औषधियाँ, आहार, शिशु आहार तथा स्वच्छता और चिकित्सा के बारे में उल्लेख किया गया हैं। इस कृति के पाँच भाग हैं। वाघतः ने625 ईसवी में छन्द तथा पद्य में ऐक चिकित्सा ग्रंथ की रचना की। भाव मिश्र ने 1550 ईसवी में शरीर विज्ञान पर ऐक विस्तरित ग्रन्थ लिखा जिस में रक्त संचार प्रणाली का पूर्ण विवरण दिया है। यह उल्लेख पाश्चात्य विशेषज्ञ हार्वे से लगभग ऐक सौ वर्ष पूर्व लिखे गये थे। भाव मिश्रने सिफिल्स रोग में पारे दूारा उपचार की परिक्रया लिखी है। यह रोग पूर्तगालियों के माध्यम से भारत में अभिशाप बन कर आया था। नारायण सूक्त – मानव शरीर विशेषत्यः हृदय , मालिनि शास्त्र ऋषि श्रगिं जड और चेतन शरीरों के बारे में उल्लेख है।सुश्रुत तथा चरक ने ही रोगी की शल्य परिक्रिया के समय औषधि स्वरूप मादक द्रव्यों के प्रयोग का वर्णन किया है। भारत में 927 ईसवी में दो शल्य चिकित्सकों ने राजा को सम्मोहिनी नाम की मादक औषधि से बेहोश कर के उस के मस्तिष्क का शल्य क्रिया से उपचार किया था। नाडी गति निरीक्षण से रोग पहचान तथा उपचार का उल्लेख 1300 ईसवी तक मिलता है। अठाहरवीं शताब्दी तक योरुप वासियों को चेचक वेक्सीनेशन का प्रयोग नहीं आता था। किन्तु भारत में 550 ई . में क्रिया का प्रयोग धन्वन्तरी के उल्लेख में मिलता है। चेचक का टीका उपचार प्राचीन भारत में परम्परागत तरीके से होता था। उस विधि को ‘टिक्का’ की संज्ञा दी गयी थी। चीन में भी यह प्रथा 11वीं शताब्दी में गयी। ब्रिटिश काल मे 1804-1805 इस्वी में इसे निषेध कर दिया था। निषेध करने का मुख्य कारण योरूप वासियों के विचार में शरीर में सूई से चुभन करना ईसाई परम्पराओं के विरुध था। भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी ने भारत की खोई हुई आयुरवेदा की पहचान पूरे विस्व मे मिली है । कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी भगवान धन्वंतरि के अवतरण पर भारत सरकार ने 28 अक्टूबर, 2016 को देश भर में प्रथम राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस व नेशनल आयुर्वेद डे मनाने की घोषणा की है।
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