केंद्र सरकार शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के देहत्याग पर राष्ट्रीय शोक घोषित करे ! - हिन्दू जनजागृति समिति

केंद्र सरकार शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के देहत्याग पर राष्ट्रीय शोक घोषित करे ! - हिन्दू जनजागृति समिति

हाल ही ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ के निधन पर सरकार ने राष्ट्रीय शोक घोषित किया है । वैसे देखें तो उनका भारत के निर्माण में कोई योगदान नहीं है । इसके विपरीत अंग्रेजों ने हमारे देश पर 150 वर्ष राज्य किया तथा भारतियों पर अत्यधिक अत्याचार ही किए हैं । उस देश की महारानी के निधन पर भारत सरकार राष्ट्रीय शोक घोषित करती है; परंतु देश के लिए स्वयं का जीवन समर्पित करनेवाले भारत के सुपुत्र तथा स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित होनेवाले हिन्दू धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजी के देहत्याग के उपरांत राष्ट्रीय शोक घोषित नहीं होता, यह दुर्भाग्यपूर्ण है । भारत सरकार हिन्दू धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजी के देहत्याग के उपरांत 'राष्ट्रीय शोक’ घोषित कर उनका यथोचित सम्मान करे, ऐसी मांग हिन्दू जनजागृति समिति ने की है ।
हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने भारत के प्रधानमंत्री मा. नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री मा. श्री. अमित शहा को पत्र भेजकर यह मांग की है । इस मांग में समिति ने कहा है कि, शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज का दिनांक 11 सितंबर 2022 को मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में स्थित श्रीजोटेश्वर धाम में 99 वर्ष की आयु में निधन हो गया है । शंकराचार्य हिन्दुओं के सर्वाेच्च धर्मगुरु थे । भगवान आदि शंकराचार्यजी द्वारा भारत में स्थापित चार पीठों में से गुजरात स्थित द्वारका शारदापीठ और बद्रीनाथ के ज्योतिषपीठ इन दो पीठों के वे शंकराचार्य थे । ।9 वर्ष की आयु में उन्होंने घर छोडा और धर्मकार्य में सम्मिलित हुए । उन्होंने वेद-वेदांग और शास्त्रों की शिक्षा काशी (उत्तर प्रदेश) में ग्रहण की । धर्मसम्राट करपात्री महाराजजी के शिष्योत्तम बनकर उन्होंने देव, धर्म और देश रक्षा के लिए स्वयं का जीवन समर्पित किया था । 19 वर्ष की आयु में वे स्वतंत्रता संग्राम में भी सम्मिलित हुए थे । म. गांधी के 1942 के अंग्रेजों के विरुद्ध ‘भारत छोडो’ आंदोलन में वे सम्मिलित हुए थे । उन्होंने 15 महीने कारावास भी भोगा था । उत्तर प्रदेश स्थित वाराणसी में 9 महीने और मध्य प्रदेश में 6 महीने कारावास में गुजारे थे । इसलिए वे ‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में परिचित हुए । इसके अतिरिक्त श्रीराममंदिर संघर्ष में भी शंकराचार्यजी ने बडा संघर्ष किया है ।
हिन्दू बहुल भारत में शंकराचार्यजी के लिए राष्ट्रीय शोक घोषित नहीं होगा, तो कहां होगा ? । गत 70 वर्षाें में कांग्रेसी नेताओं ने हिन्दुओं के धर्मगुरु का अपमान ही किया है । अब हिन्दुत्ववादी मोदी सरकार के काल में धर्मगुरु का यथोचित सम्मान होगा, ऐसी आशा है, यह भी श्री. शिंदे ने इस समय कहा ।
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