नीति आयोग में बेहतर सुझाव

नीति आयोग में बेहतर सुझाव

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
कोरोना महामारी के चलते नीति आयोग की बैठक आमने-सामने नहीं हो पाती थी। इस बार 7 अगस्त को पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बैठक हुई। बैठक में ममता बनर्जी और पिनराई विजयन जैसे गैर भाजपाई मुख्यमंत्री भी अपने-अपने सुझाव रख रहे थे। तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव ने इस बैठक का विरोध यह कहते हुए किया कि केन्द्र सरकार राज्यों के साथ भेदभाव पूर्ण प्रवृत्ति रखती है। उनका यह आरोप अपनी जगह ठीक हो सकता है क्योंकि ऐसे आरोप ममता बनर्जी भी लगाती हैं लेकिन वे बैठक में इसलिए शामिल थीं ताकि देश के समग्र विकास के लिए कुछ ठोस नीतियां बनायी जा सकें। उदाहरण के लिए इस बैठक में दाल-दलहन और तेल, तिलहन का उत्पादन बढ़ाने पर विचार किया गया। एनडीए के साथी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी बैठक में शामिल नहीं हुए। इसका कारण आरसीपीएस का जदयू से इस्तीफा था।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि हमें खाद्य तेलों में विशेष रूप से आत्मनिर्भर होनेे की जरूरत है। भविष्य को सुरक्षित रखना है तो आत्मनिर्भर होना ही पड़ेगा। दूसरे देशों से ज्यादा आयात करके हम श्रीलंका जैसे हालात पैदा कर सकते हैं। इसी प्रकार नयी शिक्षा की नीति को लागू करने की जरूरत है। शिक्षा से हम शिक्षित बेरोजगार ज्यादा पैदा कर रहे हैं, जबकि देश में काम की कमी नहीं है। इस बैठक से केन्द्र सरकार के लिए भी कुछ सीख दी गयी है। ममता बनर्जी की यह बात उचित प्रतीत होती है कि केन्द्र को राज्य सरकारों की मांगों को अधिक गंभीरता से लेना चाहिए। केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने केन्द्र और राज्यों के अधिकार पर सवाल उठाया। दिल्ली में तो सबसे ज्यादा इसी पर लड़ाई हो रही है। इस प्रकार नीति आयोग की बैठक में बेहतर सुझाव दिये गये हैं। इन पर अमल होना चाहिए। इन सुझावों को दलगत राजनीति से परे रखकर देश हित में देखना होगा।

नीति आयोग के शासकीय परिषद की सातवीं अहम बैठक गत दिनों हुई। राष्ट्रपति भवन के सांस्कृतिक केंद्र में हुई बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। बैठक में कई राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हुए। बैठक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति, जी-20, स्कूली शिक्षा और उच्च शिक्षा के क्रियान्वयन के साथ ही देश को तिलहन-दलहन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने व शहरी प्रशासन के मामले पर विचार-विमर्श हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों से फसल विविधीकरण पर ध्यान देने को कहा। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत का संघीय ढांचा और सहकारी संघवाद कोविड संकट के दौरान दुनिया के लिए एक मॉडल के रूप में उभरा है। हमें इसे और मजबूत करना होगा। गवर्निंग काउंसिल की बैठक के बाद नीति आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा कि प्रधानमंत्री चाहते हैं कि भारत खाद्य तेल में आत्मनिर्भर हो। प्रधानमंत्री ने आयात को कम करने और निर्यात बढ़ाने के लिए राज्यों से 3टी - व्यापार, पर्यटन, प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करने को कहा।
नीति आयोग ने बताया कि प्रधानमंत्री ने कृषि विविधीकरण के महत्व को व्यक्त किया और कहा कि खाद्य तेलों में विशेष रूप से आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता है। हम आयात से खाद्य तेल की अपनी कुल मांग का लगभग आधा हिस्सा पूरा कर रहे हैं। कुल मिलाकर राज्य काफी सहयोगी थे और इस पहलू पर काम कर रहे हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने कहा कि राज्य सरकार ने सुनियोजित शहरी विकास और नागरिकोन्मुखी शासन के माध्यम से कल्याणकारी गतिविधियों को प्राथमिकता दी है। पटेल ने कहा कि गुजरात ने केंद्र की नीति के अनुरूप फसल विविधीकरण भी हासिल किया है, जिसे बागवानी में सबसे अधिक स्पष्ट रूप से देखा गया है। राज्य में बागवानी फसलों का दायरा 25 वर्षों में 4.80 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 20 लाख हेक्टेयर हो गया है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने केंद्र सरकार से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के तहत खरीद की सीमा को बढ़ाकर उत्पादन का 50 प्रतिशत करने की अपील की। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के कार्यान्वयन के लिए सरकार से समर्थन मांगा।

बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि केंद्र को राज्य सरकारों की मांगों को अधिक गंभीरता से लेना चाहिए। उन पर कोई नीति थोपी नहीं जानी चाहिए। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच अधिक से अधिक सहयोग होना चाहिए। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि केंद्र को संविधान के संघीय ढांचे के खिलाफ नहीं जाना चाहिए। उसकी समवर्ती सूची में सूचीबद्ध विषयों पर कानून राज्यों के परामर्श से बनाया जाना चाहिए। केंद्र सरकार को संविधान में राज्य सूची के मामलों में कानून बनाने से बचना चाहिए।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने नीति आयोग की 7वीं गवर्निंग काउंसिल की बैठक का बहिष्कार किया। उनको छोड़कर सभी राज्यों के मुख्यमंत्री इस बैठक में हिस्सा ले रहे हैं थे केसीआर ने राज्यों के प्रति केंद्र की भेदभावपूर्ण प्रवृत्ति के खिलाफ उन्होंने यह कदम उठाया। इस संबंध में केसीआर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा। उन्होंने कहा कि मैं विरोध के रूप में दिल्ली में होने वाली नीति आयोग की 7वीं गवर्निंग काउंसिल की बैठक का हिस्सा नहीं बनूंगा। जुलाई, 2019 के बाद नीति आयोग की यह पहली भौतिक बैठक थी।
संचालन परिषद, नीति आयोग की शीर्ष संस्था है और इसमें राज्यों के मुख्यमंत्री, केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल तथा कई केंद्रीय मंत्री शामिल होते हैं। बैठक में केंद्रीय मंत्री अमित शाह, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह, एस जयशंकर के साथ ही उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, मध्य प्रदेश और असम के मुख्यमंत्री शामिल हुए तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने प्रधानमंत्री मोदी के नाम इसी संदर्भ में लिखे एक पत्र में कहा कि भारत एक सशक्त देश के रूप में तभी सामने आ सकता है जब राज्यों का भी विकास हो। उन्होंने कहा कि मजबूत और आर्थिक रूप से गतिशील राज्य ही भारत को एक सशक्त देश बना सकते हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि नीति आयोग ने ‘मिशन काकतीय’ को 5,000 करोड़ रुपये और ‘मिशन भगीरथ’ को 19,205 रुपये की केंद्रीय सहायता देने की सिफारिशें की थीं, लेकिन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने उनकी अनदेखी की और योजनाओं के लिए कोई धन जारी नहीं किया। हालांकि, राज्य सरकार ने दोनों परियोजनाओं को अपने दम पर पूरा किया है। वहीं, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने बैठक में फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) समेत कई मुद्दे उठाए। उन्होंने कहा कि तीन साल के अंतराल के बाद पंजाब से कोई प्रतिनिधि नीति आयोग की बैठक में शामिल होगा।
बैठक से एक दिन पहले जारी आधिकारिक बयान में कहा गया था कि यह बैठक स्थिर, टिकाऊ और समावेशी भारत के निर्माण की दिशा में केंद्र और राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के बीच सहयोग और सहकार के एक नए युग की दिशा में तालमेल का रास्ता खोलेगी। बैठक सम्पन्न होने के बाद यही अपेक्षा की जाती है कि राज्य सरकारें पीएम मोदी के सुझाव पर अमल करेगी और केन्द्र सरकार भी राज्यों के संवैधानिक अधिकारों का सम्मान करेगा। 
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