वैद्यनाथ
गतिमान होना ही जीवन है ,हर श्वास ही होता विश्वास ।
गति रुकना जीवन रुकना ,
उर्ध्वश्वास ही है अविश्वास ।।
जीवन में सुख दुःख आता ,
जीवन में व्याधि का भरमार ।
हर व्याधि की एक औषधि ,
बाबा वैद्यनाथ का उपचार ।।
हर व्याधि का एक है व्याधा ,
चाहे कोई संकट हो या बाधा ।
हर कुछ का है वहीं पे उपाय ,
जिसने बाबा वैद्यनाथ साधा ।।
वैद्यनाथ उपचारों के अधिपति ,
जीवन संगिनी स्वयं जो सती ।
बाबा वैद्यनाथ हैं जीवन रक्षक ,
जिनकी कृपा ही गति दुर्गति ।।
बनी रहे कृपा बाबा की सबपे ,
बाबा करें सबका ही कल्याण ।
अरुण दिव्यांश की कोटि नमन ,
सबका करें बाबा ही परित्राण ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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