दिखावे की मोहब्बत
मोहब्बत को समझा होतातो तुम्हारा ये हाल न होता।
दिलकी धड़कनों को सुना होता
तो तुम्हारा ये हाल न होता।
चाहकर भी तुम क्यों मौन रहे
पहले बोला होता तो ये न होता।
गमों में डूबने का तुम्हें शौक था
इसलिए ये रास्ता तुमने चुना न।।
अगर मरना खुदको ही था तो
उसे क्यों वेबजह मार दिया।
जो मोहब्बत को पूजा और
तपस्या समझता था।
उसकी मोहब्बत पर क्यों तुमने
इतने सारे जुल्म ढा दिये।
तुम मोहब्बत मेहसूस नहीं कर सके
तो मोहब्बत को वदनाम कर दिये।।
बड़ी गजब की सोच है तेरी
जिसमें न हमें पाना न खोना है।
बस जीवन का आनंद उठाने
के लिए कुछ भी करना है।
और दिलों से खेलकर उन्हें
अपना आशिक बनाना है।
फिर गमों के सागर में डूबोकर
उन्हें मझधार में छोड़ना है।।
मोहब्बत का नाम देकर तुम्हें
स्वयं का नाम रोशन करना है।
और जमाने में मोहब्बत मोहब्बत
की रट लगाकर दिखावा करना।
ताकि कोई तो मेरा आशिक
मोहब्बत की याद में ताज बनाये।
और स्वयं से पहले हमें
दुनियां में अमर कर जाए।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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