एकनाथ शिंदे के दायित्व

एकनाथ शिंदे के दायित्व

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
  • मुख्यमंत्री के दायित्व के साथ शिवसेना के नेता का भी निभाना होगा दायित्व।
महाराष्ट्र में नाटकीय घटनाक्रम के बाद शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बन गये। उन्हांेने अपनी पार्टी के कथित रूप से 39 विधायक तोेड़े, जिससे दलबदल कानून उन पर लागू नहीं होगा। उनकी सरकार को भाजपा समर्थन दे रही है जिसके अपने खुद के 106 विधायक हैं और 15 निर्दलीय विधायकों का समर्थन भी उसे मिला हुआ है। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए एकनाथ शिंदे ने कहा कि कई फैसले लम्बित हैं जिन्हें पूरा किया जाएगा। उन्होंने कहा कि मेरा लक्ष्य महाराष्ट्र का विकास करना है। मैं अपनी सरकार में महाराष्ट्र के हर क्षेत्र में विकास करूंगा। एक मुख्यमंत्री के रूप में शिंदे का यह कहना वाजिब भी है। इसके साथ ही उन्हांेने भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के एहसान को भी याद रखा। शिंदे ने कहा कि मैं हमारे उपमुख्यमंत्री देवेन्द फडणवीस के अनुभवों को महाराष्ट्र को और बेहतर बनाने में इस्तेमाल करूंगा। इसके साथ ही एकनाथ शिंदे ने अपने कई दायित्वों का उल्लेख करना जरूरी नहीं समझा। उनके मुख्यमंत्री बनने से पहले तक, जब देवेन्द्र फडणवीस पत्रकार वार्ता कर रहे थे, तब सबसे ज्यादा जोर हिन्दुत्व पर दिया जा रहा था। फडणवीस और एकनाथ शिंदे दोनों ने शिवसेना के हिन्दुत्व और उसके संस्थापक बाल ठाकरे को याद किया। शिंदे ने ठाणे जिले में दिवंगत शिवसेना नेताओं बाल ठाकरे और अपने राजनीतिक गुरू आनंद दिघे को श्रद्धांजलि देकर ही शपथ ग्रहण की शुरुआत की थी। इसका मतलब कि शिवसेना को मजबूत रखने का दायित्व भी एकनाथ शिंदे को निभाना है। समस्या यह है कि भाजपा का सहारा लेकर वह सरकार चला रहे हैं जो महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है। अभी शीघ्र वृहन्न मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के चुनाव होने हैं जहां आज भी शिवसेना का कब्जा है। अब भाजपा को वहां रोकने का काम क्या शिंदे कर पाएंगे? अभी तो एनसीपी नेताओं पर ही मुकदमें चल रहे हैं, शिवसेना के संजय राउत को ईडी की नोटिस भेजी गयी है। उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे का नाम भी फिल्म अभिनेता सुशांत राजपूत की संदिग्ध मौत के मामले में उछाला गया था। शिवसेना को मजबूत बनाने का दायित्व भी एकनाथ श्ंिादे पर है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि मीडिया से लेकर राजनेता तक महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के इस खेल से हैरान हैं। उद्धव ठाकरे के तीन दर्जन से अधिक विधायक बागी हो गये लेकिन सरकार की खुफिया को पता ही नहीं चला। दस दिन की मार्मिक अपीलों और अपना-अपना पक्ष रखने के बाद जब भाजपा फ्रंट पर आयी तो यही कहा जा रहा था कि देवेन्द्र फडणवीस ही दुबारा मुख्यमंत्री होंगे और एकनाथ शिंदे को यही जानकारी थी। यही कारण था कि सरकार बनाने का दावा पेश करने जब देवेन्द्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे राजभवन पहुंचे तो प्रोटोकाल के तहत राज्यपाल ने पहले फडणवीस को मिठाई खिलाई और बाद में एकनाथ शिंदे को। बताते हैं कि उस समय तक संदेश आ चुका था कि एकनाथ शिंदे को डिप्टी सीएम नहीं बल्कि सीएम बनाना है। फडणवीस को संभवतः हाईकमान का फैसला अच्छा नहीं लगा हो, इसीलिए उन्हांेने पत्रकारों के सामने जब एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाए जाने की जानकारी दी, तब कहा कि मैं सरकार में शामिल नहीं हो रहा हूं। इसके बाद उन्होंने डिप्टी सीएम की शपथ ली। यह भी हाईकमान के निर्देश पर हुआ। इस प्रकार सभी को हैरानी में डालते हुए एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। उन्हांेने भाजपा नेतृत्व का आभार जताया। भाजपा और देवेन्द्र फडणवीस के बड़प्पन की तारीफ करते हुए उन्हांेने यह स्वीकार किया कि मुख्यमंत्री पद की हकदार तो भाजपा ही थी।

राजनीति में अब कुछ भी निश्चित नहीं है। बयान, वचनबद्धता और हाथ मिलाना यदि सफलता की सीढ़ी पर चढ़ने के पायदान हैं तब तो एकनाथ शिंदे जो भी कर रहे, वो उचित है। चार बार के विधायक एकनाथ शिंदे को बाला साहब ठाकरे और आनंद दिघे से बहुत कुछ सीखने को मिला है जो अब उनके काम आएगा। उन्हांने इतने विधायकों को अपने साथ जोड़कर रखा यह उनके नेतृत्व का एक परिचय है। शिवसेना के नेता के रूप में उनकी छवि भी अब तक बरकरार है। वे अपने गुट को ही असली शिवसेना बता रहे हैं लेकिन भाजपा के दम पर ही उनकी सरकार बन रही है। भाजपा की कार्यशैली का यह नमूना शिंदे के लिए सर्वथा नया है। वे खुद हैरान हुए होंगे जब भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि फडणवीस शिंदे के नेतृत्व में महाराष्ट्र की नई मंत्रिपरिषद का हिस्सा होंगे। इससे कुछ मिनट पहले ही देवेन्द्र फडणवीस ने राज्य सरकार में शामिल न होने की घोषणा की थी। इस तरह की सरकार में एकनाथ शिंदे को अपनी पार्टी शिवसेना को मजबूत करने के साथ राज्य के विकास की प्राथमिकता निभानी है।

एकनाथ शिंदे कहते हैं कि वे बाला साहब ठाकरे के हिन्दुत्व को ही आगे बढ़ाएंगे। हम शिवसेना के तौर पर ही काम कर रहे हैं। उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद शिवसेना बागी गुट के नेता एकनाथ शिंदे मुंबई पहुंचे और कहा कि हम सभी लोग बाला साहेब ठाकरे की विचारधारा को आगे ले जा रहे हैं। उन्हांेने कहा था कि हम किसी भी पार्टी में विलय नहीं करेंगे। हम ही शिवसेना हैं। उद्धव ठाकरे के सभी विधायकों को हमारा ह्विप मानना पड़ेगा। इस प्रकार एकनाथ शिंदे ने विधायी भाषा और भावना दोनों से अपने को शिवसैनिक बताया। शिंदे के इस बयान से यह भी साफ है कि उद्धव ठाकरे और बागी गुट के बीच में छिड़ी जंग अभी खत्म नहीं हुई है। बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना किसकी होगी और पार्टी का चुनाव चिह्न (धनुष-बाण) किसको मिलेगा, इसको लेकर भी टकराव बढ़ेगा। ऐसे हालात में भी बीएमसी का चुनाव होना है। बीएमसी पर शिवसेना का प्रमुत्व है। यदि एकनाथ शिंदे शिवसेना का बीएमसी पर प्रभाव दुबारा कायम नहीं रख पाए तो उनकी इस बात पर आशंका जताई जाएगी कि वे शिवसेना को मजबूत कर रहे हैं। बाल ठाकरे और आनंद दिघे ने भाजपा को आगे नहीं बढ़ने दिया था तो एकनाथ शिंदे उनके आदर्शों पर चलने की दुहाई कैसे देंगे? उद्धव ठाकरे के दावे को अनसुना करते हुए एकनाथ शिंदे ने अपने को जब असली शिवसेना बताया था, तब उनकी गणित अलग थी। महाराष्ट्र विधानसभा में शिवसेना के 55 विधायक हैं। एकनाथ 39 विधायकों के सथ रहने का दावा करते हैं, इस प्रकार उनके गुट को विधानसभा अध्यक्ष मान्यता देंगे लेकिन सरकार चलाने के दौरान भी क्या शिवसेना के विधायक उसी तरह समर्थन देंगे, जैसे अभी दे रहे हैं। उद्धव ठाकरे के ज्यादातर मंत्री एकनाथ शिंदे के गुट में चले गये। उनको यही शिकायत थी कि उनको एनसीपी के दबाव में काम करना पड़ रहा था लेकिन क्या अब भाजपा का दबाव नहीं रहेगा? एकनाथ शिंदे को इस तरह की भी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।
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