वरतुहार और विवाहकटवा
जय प्रकाश कुँवर
श्यामलाल अपने गाँव के प्रतिष्ठित किसानों में से एक थे! उनके घर दो बैलों की खेती होती थी और उस इलाके में उनका अच्छा खासा नाम था! उनका एकलौता पुत्र मोहन दो साल पहले मैट्रिक पास कर चुका था और अब आगे की पढ़ाई जारी न रख वह अपने पिता की खेती बारी में उनका मदद करता था! वह अच्छे कद काठी का छरहरे बदन वाला अब नवयुवक बन चुका था! श्यामलाल के परिवार में उनकी पत्नी रमिया और उनके बेटे मोहन के अलावा और कोई नहीं था! उनके घर में मोहन का जन्म उनकी शादी के काफी अर्शे बाद ईश्वर से काफी दुआ मन्नत के बाद हुआ था अत: अब वे पति पत्नी अपने जीवन की जवानी की उम्र पार कर अब बुढ़ापे की ओर अग्रसर हो चले थे! अब उनकी मंशा यही थी कि किसी तरह अपने पुत्र मोहन की शादी कर देंगे ताकि घर को संभालने वाली कोई सुशील बहु आ जाय!
मोहन देखने में सुडौल शरीर वाला युवक था परंतु स्वभाव से वह बहुत सीधा साधा था अत: अपने दोस्तों के बीच उसकी गिनती बुड़बक के रूप में की जाती थी! वह हमेशा अपने दोस्तों और साथियों के साथ रहता था और उन पर खुब विश्वास करता था! परंतु उसके दोस्त उसके मृदुल व्यवहार के कारण उसे कौतुहल का साधन समझते थे!
सामाजिक परंपरा के अनुसार गोधन कुटाई समाप्त होने के बाद जैसे ही लगन आरंभ होता था, श्यामलाल के घर वरतुहार ( तिलकदहरू ) लोगों का आना जाना शुरू हो जाता था! पिछले दो साल से जब से मोहन मैट्रिक पास किया था, तब से यह सिलसिला कुछ ज्यादा ही चल रहा था लेकिन किसी न किसी वजह से अब तक मोहन की शादी पक्की नहीं हो सकी थी!
उन दिनों, यानि १९९० दशक के पहले गाँव देहातों में लड़के लड़कियों की शादी ज्यादातर कम उम्र में ही हो जाती थी! समाज में यह प्रचलन था कि लड़की पक्ष के लोग अपने परिवार तथा गाँव एवं कुछ रिश्तेदारों के साथ लगभग आठ- दश की संख्या में वरतुहार बनकर अपने समकक्ष अथवा उपर के हैशियत वाले लड़के पक्ष के गाँव परिवार में बैलगाड़ी और साईकिल की सवारी कर जाते थे और लड़के को देख सुन कर शादी तय की जाती थी! लड़का पक्ष की ओर से लड़की को देखने उनके घर जाने की प्रथा तब समाज में नहीं थी! तब लड़के को देख सुन कर परंतु लड़कियों को एक मात्र विश्वास और उनके परिवार के अनुसार ही चुना जाता था!
श्यामलाल बहुत ही मिहनतकश किसान थे और उनके घर खेती से अच्छी पैदावार होती थी, इससे गाँव के उनके पड़ोसी उनके परिवार से जलते थे और उनके परिवार की तरक्की उनलोगों को सहन नहीं हो पा रही थी! जब श्यामलाल के लड़के मोहन के शादी की बात आती तो ये और भी ईर्ष्या करने लगते और किसी तरह शादी काटने में लगे रहते थे! गाँव के मोहन के दोस्त तो और भी नहीं चाहते थे कि मोहन की शादी उनसे पहले और किसी अच्छे परिवार में हो!
हर साल की तरह इस साल भी गोधन कुटाई के बाद लगन शुरू हुआ और श्यामलाल के घर वरतुहारों का आना शुरू हो गया! अब श्यामलाल भी यही चाहते थे कि जल्द से जल्द मोहन की शादी कर दी जाय और इस तरह हर साल और हर रोज वरतुहारों के आने जाने और उनके लिए तरह तरह के खाना आदि तैयार करने के झंझट से तथा इस फिजूल खर्चे से फुर्सत मिले!
आज श्यामलाल के घर वरतुहार पुरे दो बैलगाड़ी में भरकर तथा कुछ लोग साईकिल पर सवार होकर १०-१२ की संख्या में किसी दुर गाँव से पहुंचे हुए हैं! उनके बैठने और आराम करने के लिए अनेकों चारपाईयो तथा चौकी पर गद्दे, चादर आदि बिछाया गया है! कुछ काठ की कुर्सियां भी बगल में रखी गई है! वरतुहारों को सरबत पानी पिलाया जा रहा है! उनके खाने के लिए श्यामलाल के घर में बनने वाले रसोई और पकवान की खूसबू घर के बाहर बैठकखाने तक आ रही है!
श्यामलाल के घर और दालान ( बैठकखाना ) के सामने एक पक्का कुआँ है, जिस पर बाल्टी में पानी आदि का इन्तजाम किया गया है, ताकि वरतुहार हाथ पांव धो सकें! कुएँ के जगत पर मोहन के दोस्तों और साथियों का जमघट लगा हुआ है! वरतुहारों को देखकर उपर उपर तो ये खुश दिख रहे हैं, परंतु दिल ही दिल में वे सब जल रहे हैं, की कैसे इस बार भी शादी को काटा जा सके!
इसके लिए उन्होंने सीधे सादे मोहन को तरह तरह की बातें समझा कर और मोहन के अभिभावक के बिना जानकारी के, मोहन का सिर का बाल मुड़वा दिया है! अब जब भी कोई वरतुहार हाथ पांव धोने कुएं पर आता है तो दोस्त सब आपस में यही चर्चा करने लगते हैं कि " लगता है मोहन का दिमाग फिर गरम हो गया है जिसके कारण उसका सिर मुड़वा दिया गया है " अगर ऐसा नहीं होता तो शादी ठीक होने के समय कोई लड़का सिर छिलवा कर क्यों रखता! वरतुहार लोगों के बीच इस बात पर संसय होती है और वे आपस में खुसुर फुसुर करने लगते हैं! उनमें से कोई कुएं पर बैठे मोहन के दोस्तों से कहता है कि हमलोग इसी लड़के की शादी के लिए आये है और आप लोग इस गाँव के होकर ऐसी बातें कर रहे हैं! कृपया हमलोगों को खुलकर बताइए! इस पर मोहन का एक दोस्त जो कुएं पर बैठा है, कहता है कि ऐसा विशेष कुछ नहीं है केवल लड़का ( मोहन) गर्मी का सुरुवात होते ही पागलों जैसा हरकत करने लगता है और दिमाग ज्यादा गरम न हो इसलिए घर के इसके अभिभावक इसका सिर मुड़वा देते हैं! यह बात वरतुहारों को नहीं जनाया जाता है! आप लोग भी वरतुहारों में इसकी चर्चा नही किजियेगा!
अब इस बात को सुनकर लड़की के परिवार वाले तथा अन्य सभी वरतुहार काफी दुखी हो जाते हैं और सोचते हैं कि शायद ईश्वर ने उनकी लड़की को एक पागल के साथ शादी करने से पहले ही रोक दिया, अन्यथा उनकी लड़की का जीवन बर्बाद हो जाता! अब वे लोग अपनी और खातीरदारी न करवा कर लौटने की तैयारी करने लगते हैं! इस प्रकार इस बार भी मोहन की शादी होने से रूक गयी अन्ततोगत्वा समय आने पर श्यामलाल मोहन की यह दशा देखकर समझ जाते हैं कि ये गाँव वाले विवाहकटवा लोग उनके लड़के की शादी कभी नहीं होने देगें और इस बात से वे काफी दुखी होते हैं! /
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