तृतीय ‘हिन्दू राष्ट्र संसद’ में भारत की शिक्षा नीति पर चर्चा !

तृतीय ‘हिन्दू राष्ट्र संसद’ में भारत की शिक्षा नीति पर चर्चा !
भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए धर्माधारित गुरुकुल शिक्षा आवश्यक ! 

जो शिक्षा लेने से जीवन में आत्मबल निर्माण होता है, चरित्र निर्माण होता है, वही खरी शिक्षा है । इसके विपरीत वर्तमान शिक्षा प्रणाली में उच्चशिक्षित युवक भी आत्महत्या करते हैं । गुरुकुल व्यवस्था में विद्यार्थी एकत्र रहते थे । इसलिए उनमें ‘कुटुंब’ भावना निर्माण होती थी । भारतीय शिक्षा प्रणाली आचार्य मूलक, ज्ञानमूलक, ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना निर्माण करनेवाली थी । शिक्षा से होनेवाली आध्यात्मिक क्रांति संसार को दिशादर्शक सिद्ध होगी । इसलिए भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए और भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए धर्माधारित गुरुकुल शिक्षा दी जाए, ऐसा प्रस्ताव तृतीय ‘हिन्दू राष्ट्र संसद’ में पारित किया गया । ‘वर्तमान स्थिति में हिन्दू शैक्षणिक नीति किस प्रकार अपनाई जाए’, इस विेषय पर संसद में *सभापति के रूप में श्री**. नीरज अत्री, उपसभापति के रूप में सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे और सचिव के रूप में श्री. **शंभू गवारे* ने काम देखा । 
*हिन्दुओं को श्रीमद्भगवद्गीता सीखने की इच्छा हो, तो संसद वैसा प्रस्ताव पारित करे **!* - श्री. रमेश शिंदे
सर्वाेच्च न्यायालय ने श्रीमद्भगवद्गीता को ‘राष्ट्रीय ग्रंथ’ मानना अस्वीकार कर दिया है । इसलिए शिक्षा में ‘गीता’ का समावेश करना अनुचित है, ऐसा प्रस्ताव इस संसद के विरोधी दल के सदस्यों ने प्रस्तुत करने पर उसका खंडन करते हुए श्री. रमेश शिंदे ने कहा, ‘‘शाहबानो अभियोग में मुसलमानों के तुष्टीकरण के लिए सर्वाेच्च न्यायालय ने दिया हुआ निर्णय तत्कालीन संसद ने परिवर्तित कर दिया । इसलिए बहुसंख्यक हिन्दुओं की यदि श्रीमद्भगवद्गीता सीखने की इच्छा हो, तो सार्वभौम संसद को वैसा प्रस्ताव पारित करने का अधिकार है ।’’ विरोधी दल के एक सदस्य ने कहा, शिक्षा में अन्य भाषाओं के साथ अंग्रेजी भी सिखाना आवश्यक हो !’’ इस प्रस्ताव का खंडन करते हुए श्री. रमेश शिंदे ने कहा, ‘‘हमारे पास जन्म के पश्चात नहीं, अपितु महाभारत काल में गर्भ में ही अभिमन्यु को ज्ञान मिलने का उदाहरण है । इसलिए जिस मातृभाषा में गर्भ में ज्ञान देने का सामर्थ्य है, उस स्थान पर अंग्रेजी शिक्षा की आवश्यकता ही क्या है ? अंग्रेजों ने राज्य किए हुए अनेक देश अब उनकी मातृभाषा में ही शिक्षा दे रहे हैं । भारत इस गुलामी से कब बाहर आनेवाला है ? इसलिए भारत में प्राथमिक शिक्षा से मातृभाषा ही सिखाई जाए ।’’

श्री. अभय भंडारी ने प्रस्ताव प्रस्तुत किया, ‘‘शिक्षकों की नियुक्ति करते समय केवल शैक्षणिक मूल्य देखकर नहीं, अपितु शुद्ध चरित्रवाले शिक्षक हों ।’’ इस प्रस्ताव का अनुमोदन करते हुए उपसभापति सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे ने कहा, ‘‘वर्तमान स्थिति में पैसे लेकर शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है । इसलिए विद्यार्थी विषय ठीक से समझ नहीं पाते और रट लेते हैं । अतः विद्यार्थियों को ठीक से शिक्षा नहीं मिलती ।’’ संसदीय विशेष समिति के सदस्य अधिवक्ता उमेश शर्मा ने कहा ‘‘अंग्रेजी केवल भाषा है, वह ज्ञान नहीं है । भारत की प्रत्येक प्रादेशिक भाषा समृद्ध है । अंग्रेजी सिखाने की आवश्यकता नहीं है ।’’ इस समय पारित किए गए प्रस्तावों में ‘भारतीय संस्कृति से जिन त्योहारों का संबंध नहीं है, वे त्योहार विद्यालय में न मनाए जाएं’, ‘शिक्षा मातृभाषा में दी जाए’, ‘विद्यार्थियों को संस्कृत भाषा सिखाई जाए’ आदि सहित अन्य प्रस्तावों का समावेश था ।
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