नागरिकता संशोधन कानून की सौगात

नागरिकता संशोधन कानून की सौगात

(डॉ. दिलीप अग्निहोत्री-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
नागरिकता संशोधन कानून को लेकर नई दिल्ली व लखनऊ में नए अंदाज का आंदोलन चलाया गया था। बिडंबना देखिए देश व यूपी की राजधानी में उत्पीड़ित लोगों को कानून के अनुरूप नागरिकता प्रदान की गई। इस प्रकार कानून अपने में सार्थक सिद्ध हुआ। इसी के साथ आन्दोलनजीवी जवाबदेह हुए हैं। उनको बताना चाहिए कि वह नागरिकता देने वाले कानून का विरोध क्यों कर रहे थे। क्या उन्हें अफगानिस्तान में तालिबानी हिंसा से प्रताड़ित भारतीय मूल के लोगों को नागरिकता देना गलत लग रहा है। इन लोगों को नई दिल्ली में नागरिकता प्रदान की गई थी। तालिबानी हिंसा में इनका व्यापार तबाह हो गया था। इनकी सम्पत्ति पर तालिबानी आतंकियों का कब्जा हो गया था। भारत के अलावा दुनिया का कोई देश इनकी चिंता करने वाला नहीं था। इसी प्रकार लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बांग्लादेश से उत्पीड़ित भारतीय मूल के लोगों को नागरिकता प्रदान की। इनकी सुनवाई भी दुनिया में कहीं भी संभव नहीं थी। क्या आन्दोलनजीवी इसका भी विरोध करेंगे। क्या वह कहेंगे कि शाहीन बाग व घण्टाघर का प्रदर्शन सही था। क्या वह विरोध प्रदर्शन मानवीय आधार पर उचित था। सवाल केवल आन्दोलनजीवियों से नहीं है। उस आंदोलन को अपना समर्थन देने वाले सभी नेता भी जवाबदेह हैं। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में विपक्षी नेताओं व आन्दोलन जीवियों ने जमीन आसमान एक कर दिया था। यह कानून उत्पीड़ित बंधुओं को नागरिकता देने के लिए था। इस आधार पर हंगामा अमानवीय कहा जाता। इसलिए सुनियोजित तरीके से भ्रम फैलाया गया। कहा गया कि इस कानून से वर्ग विशेष से कागज मांगें जाएंगे। उनकी नागरिकता समाप्त की जा सकती है। मतलब नागरिकता देने संबन्धी कानून को नागरिकता छीनने वाला बताया गया।

शाहीन बाग से लेकर घन्टाघर तक नए अंदाज का आंदोलन चलाया गया। इसमें मुस्लिम महिलाओं को

धरने पर बैठाया गया। मर्द लोग घर पर रहे, धरना देने वालों को सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही थीं। फिर इसी तर्ज पर किसानों के नाम पर आंदोलन शुरू किया गया था। भारत में इस प्रकार सम्पूर्ण सुविधायुक्त आंदोलन को वर्ष नहीं दशकों तक खींचा जा सकता है। जब तक फंडिंग मिलेगी तब तक आंदोलन को चलाया जा सकता है। योगी आदित्यनाथ ने लोक भवन में पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित अनेक हिन्दू बंगाली परिवारों के पुनर्वासन हेतु कृषि भूमि का पट्टा, आवासीय पट्टा तथा मुख्यमंत्री आवास योजना के स्वीकृति पत्र वितरित किये। पूर्वी पाकिस्तान से विस्थापित इन हिन्दू बंगाली परिवारों की अड़तीस वर्षों की प्रतीक्षा दूर हुई। जबकि विरोधियों ने नागरिकता कानून पर नफरत फैलाने का कार्य किया था। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश घोषित रूप से इस्लामिक मुल्क हैं। भारत के इस नए नागरिकता कानून में धार्मिक रूप से इन मुल्कों में प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान किया गया था। इन मुल्कों में अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया जाता है। इसका प्रमाण इनकी घटती जनसंख्या को देख कर लगाया जा सकता है। नागरिकता कानून केवल इन तीन मुल्कों के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों पर लागू है। इन तीन देशों के अल्पसंख्यकों के अलावा किसी अन्य देश के संबन्ध में भी यह बात लागू नहीं की गयी है। जम्मू कश्मीर में सत्तर वर्षों तक दलितों को सुविधाएं नहीं मिली थीं, तब कोई सरकार संविधान की दुहाई नहीं देती थी। संविधान का अनुच्छेद चैदह अवैध घुसपैठियों पर लागू

नहीं होता। यह अनुच्छेद केवल भारतीय नागरिकों पर लागू है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि नागरिकता संशोधन कानून तीन पड़ोसी देशों में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देगा न कि भारत में किसी की नागरिकता छीनेगा।

नए कानून का मतलब यह नहीं है कि सभी शरणार्थियों को अपने आप ही भारतीय नागरिकता मिल जाएगी। उन्हें भारत की नागरिकता पाने के लिए आवेदन करना होगा जिसे सक्षम प्राधिकरण देखेगा। संबंधित आवेदक को जरूरी मानदंड पूरे होने के बाद ही भारतीय नागरिकता दी जाएगी। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं अफगानिस्तान से भारत आये हुए अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता देने और उनके पुनर्वास के कार्यक्रम हेतु एक एक्ट पास किया गया। इसके पश्चात वर्तमान प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश में रह रहे ऐसे परिवारों की जानकारी इकट्ठा की गयी। उन्होंने कहा कि वर्ष 1970 में आये इन परिवारों के बारे में पता चला कि इन परिवारों की स्थिति अत्यन्त बदहाल है। यह लोग खानाबदोश की तरह जीव-यापन कर रहे हैं। इनके पुनर्वास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का कार्य किया गया। राजस्व विभाग ने समयबद्ध ढंग से इन कार्यक्रमों को आगे बढ़ाकर इन परिवारों के लिए व्यवस्थित पुनर्वास की कार्ययोजना को यहां लागू कर इन्हें आवासीय पट्टा प्रदान किया है। जो लोग उस देश में जहां के वे मूल निवासी थे,वहां पर प्रताड़ित हुए,उन पीड़ित परिवारों को भारत सरकार द्वारा सहर्ष स्वीकार कर उनका देश में स्वागत किया गया। साथ ही उनके पुनर्वास के कार्यक्रम को आगे बढ़ाया गया। भारत का मानवता के प्रति सच्ची सेवा का एक यह अभूतपूर्व उदाहरण सबके सामने है। मानवता की रक्षा करने का कार्य भारत द्वारा आगे बढ़ाया जा रहा है। पूर्ववर्ती संवेदनहीन सरकारें इनकी बातों को गम्भीरता से नहीं लेती थीं। इनका गांव एक नये गांव के रूप में बसाया जा रहा है। इनके गांव को आदर्श गांव या स्मार्ट विलेज के रूप में स्थापित किया जाएगा। वर्तमान प्रदेश सरकार ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से कार्य कर जनजातियों को भी चिन्हित करके आवासीय पट्टा उपलब्ध कराने के साथ ही प्रधानमंत्री आवास योजना मुख्यमंत्री आवास योजना का लाभ प्रदान किया। मुख्यमंत्री आवास योजना ग्रामीण के अन्तर्गत प्रदेश में अब तक एक लाख आठ हजार से अधिक परिवारों को आवास आवंटित किये जा चुके हैं। वर्तमान प्रदेश सरकार ने अड़तीस वनटांगिया गांवों को राजस्व गांवों में परिवर्तित किया। वनटांगिया समुदाय के लोगों को विकास की मुख्य धारा से जोड़कर विभिन्न योजनाओं का लाभ दिलाया गया। आजादी के बाद पहली बार इन लोगों ने मताधिकार का प्रयोग किया। आजादी के बाद सत्तर वर्षों तक इनका कोई मकान नहीं बन पाया था। आज वर्तमान केन्द्र व राज्य सरकार के प्रयासों से इनके पास अपने पक्के मकान हैं। वर्तमान सरकार द्वारा प्रदेश के बयालीस हजार से अधिक मुसहर परिवारों को आवासीय पट्टा और आवास उपलब्ध कराया गया है। प्रदेश में वनटांगिया गांवों के करीब पांच हजार परिवारों, कुष्ठावस्था से प्रभावित करीब चार हजार परिवारों,दैवीय आपदा से पीड़ित छतीस हजार परिवारों, कालाजार से प्रभावित करीब ढाई सौ परिवारों इन्सेफेलाइटिस से पीड़ित छह सौ परिवारों, थारू वर्ग के डेढ़ हजार से अधिक परिवारों, कोल वर्ग के तेरह हजार से अधिक परिवारों, सहरिया समुदाय के साढ़े पांच हजार से अधिक परिवारों, चेरो समुदाय के करीब छह सौ परिवारों को मुख्यमंत्री आवास योजना के अन्तर्गत एक एक आवास उपलब्ध करवाने का कार्य किया जा चुका है।
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