एमसीडी का पुनर्मिलन

एमसीडी का पुनर्मिलन

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
देश की राजधानी दिल्ली के जहांगीरपुरी में 16 अप्रैल को हनुमान जन्मोत्सव के दौरान हिंसा हुई थी। इसी के बाद वहां मस्जिद के पास अवैध निर्माण को ढहाने की मांग की गयी थी। यह क्षेत्र उत्तरी दिल्ली महानगर निगम के अंतर्गत आता है। एमसीडी के मेयर राजा इकबाल सिंह हैं। उन्हांेने उत्तरी दिल्ली नगर निगम से जहांगीरपुरी में हुई हिंसा के आरोपियों की अवैध संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने का आदेश दे दिया। बुलडोजर चला भी लेकिन इसी बीच याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये। सुप्रीम कोर्ट ने जब यथास्थ्ािित बनाए रखने का आदेश दिया तो एमसीडी की कार्रवाई भी रोक दी गयी। दिल्ली की एमसीडी इस समय चर्चा में भी है क्योंकि नरेन्द्र मोदी की सरकार ने इसका पुनर्मिलन कर दिया है। दिल्ली में तीन महानगर हैं और तीन ही मेयर होते हैं। हालांकि पहले भी एक ही दिल्ली महानगर निगम (एमसीडी) था। लगभग 10 साल बाद तीनों एमसीडी को एक में मिला दिया गया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल इसका विरोध भी कर रहे हैं लेकिन मोदी सरकार ने कैबिनेट में इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। केन्द्र सरकार का मानना है कि इससे दिल्ली की जनता को बेहतर सुविधाएं मिल सकेंगी और तीन नगर निगमों में जो भेदभाव की शिकायतें की जा रही थीं, वे नहीं आएंगी। जहांगीरपुरी में हिंसा के बाद ही अतिक्रमण की याद एमसीडी को क्यों आयी? इस तरह की समस्याएं भी अब नहीं आएंगी।
दिल्ली के तीनों नगर निगम के बंटवारे के समय बगैर क्षेत्रफल का नाप लिये ही अलग-अलग दिशाओं में इसके पांव फैला दिए गए थे। दिल्ली के सुदूर उत्तरी क्षेत्र नरेला और बवाना में रहने वाले किसी व्यक्ति को यदि उत्तरी नगर निगम में कोई काम पड़ जाए तो उसे कम से कम 40 किलोमीटर दूर आना पड़ता था। जबकि इसका उद्देश्य यही था। इसी तरह दक्षिणी नगर निगम के पास एक दशक से अधिक समय बीत जाने के बावजूद आज तक अपना कार्यालय नहीं है। चूंकि वह अपना कार्यालय सिविक सेंटर से संचालित करता आ रहा है, लिहाजा उससे तीन हजार करोड़ रुपये किराये का तकादा उत्तरी नगर निगम करता रहा है। भारत सरकार ने दिल्ली नगर निगम (संशोधन) कानून, 2022 को अधिसूचित कर दिया है। इसके साथ ही तत्काल प्रभाव से दिल्ली के तीनों नगर निगम यानी पूर्वी, उत्तरी और दक्षिणी एक हो चुके हैं और इन्हें संयुक्त रूप से दिल्ली नगर निगम कहा जाएगा। लोकसभा और राज्यसभा से पास हो जाने के बाद नगर निगम विधेयक पर राष्ट्रपति ने भी हस्ताक्षर कर दिए। उनके हस्ताक्षर के साथ ही यह विधेयक कानून में बदल गया। इसी के साथ ही भारत सरकार ने इसे अधिसूचित भी कर दिया है।
दिल्ली नगर निगम के चुनाव नहीं होने तक उसकी कमान राजनीतिक व्यक्ति के बजाए नौकरशाह के हाथ में होगी। अब भारत सरकार दिल्ली नगर निगम के लिए एक विशेष अफसर की नियुक्ति करेगी जो निगम के सभी कार्यों का निर्वहन करने के लिए उत्तरदायी होगा। राज्यसभा में दिल्ली नगर निगम अधिनियम संशोधित विधेयक पर जवाब देने के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री ने एलान किया था कि दिल्ली नगर निगम का प्रशासक किसी भी राजनीतिक व्यक्ति को नहीं बनाया जाएगा। इस तरह नगर निगम की कमान प्रशासक के तौर पर कोई नौकरशाह संभालेगा। तीनों नगर निगमों का विलय होने के बाद अस्तित्व में आने वाले दिल्ली नगर निगम में करीब 80 हजार की आबादी पर एक वार्ड होंगे। इस संबंध में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में दिल्ली नगर निगम अधिनियम संशोधन विधेयक पारित करने के दौरान संकेत भी दिए थे। पांच साल पहले तीनों नगर निगमों के 272 वार्ड बनाने के दौरान करीब 50 हजार की आबादी शामिल की गई थी। केंद्र सरकार ने दिल्ली नगर निगम अधिनियम में संशोधन विधेयक में वार्डों की संख्या 272 से कम करके अधिकतम 250 की है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली नगर निगम में अधिकतम 250 वार्ड बनाने की मंशा से पर्दा उठाते हुए खुलासा किया था कि वर्तमान समय में दिल्ली में करीब दो करोड़ आबादी है और उसे 250 वार्डों में बांटा जाएगा। लिहाजा एक वार्ड में 80 हजार आबादी शामिल की जाएगी। अब कयास लगाए जा रहे हैं कि वार्डों का परिसीमन वर्ष 2021 की जनगणना की रिपोर्ट आने के बाद किया जाएगा, क्योंकि वर्ष 2011 की जनगणना के तहत वार्डों का गठन 80-80 हजार आबादी शामिल करके नहीं हो सकता।
वर्ष 2011 की जनसंख्या की रिपोर्ट के तहत वर्ष 2017 में तीनों नगर निगम के वार्डों का गठन किया गया था। उस दौरान 50 हजार आबादी पर एक वार्ड बनाया गया। आज कई वार्डों में मतदाताओं की संख्या करीब 20 फीसदी बढ़ चुकी है। इस कारण 80 हजार आबादी पर एक वार्ड का गठन करने के लिए वर्ष 2021 की जनगणना की रिपोर्ट आने का इंतजार करना पड़ेगा।
उधर 80 हजार आबादी पर एक वार्ड का गठन करने की दिशा में 48 विधानसभा क्षेत्रों में वार्डों की संख्या कम होने का अनुमान है। दिल्ली की वर्तमान जनसंख्या की अपुष्ट रिपोर्ट के अनुसार 48 विधानसभा क्षेत्रों में एक से लेकर दो वार्ड कम हो जाएंगे, जबकि एक भी विधानसभा क्षेत्र में वार्डों की संख्या में इजाफा नहीं होगा। इसके अलावा 20 विधानसभा क्षेत्रों में वार्डों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होने की संभावना है।
बहरहाल दिल्ली की तीनों नगर निगम के एकीकरण का रास्ता साफ हो गया। केंद्र सरकार ने दिल्ली के तीनों नगर निगमों को एक करने वाला विधेयक संसद में पेश किया था और कहा था कि एक नगर निगम होने से उसकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। गृह मंत्री अमित शाह ने बिल को पेश करते हुए बताया कि दिल्ली देश की राजधानी है और यहां की तीनों नगर निगमों में एक लाख 40 हजार कर्मचारी काम करते हैं। राष्ट्रपति और पीएम के निवास समेत तमाम केंद्रीय दफ्तर यहीं पर स्थित हैं। देशी-विदेशी यात्राओं के लिए दिल्ली बड़ा केंद्र है। ऐसे में इस शहर के बारे में सभी को सोचने की जरूरत है। उन्होंने नगर निगम के बंटवारे को लेकर भी यूपीए सरकार पर सवाल उठाए थे और कहा कि निगम के बंटवारे का फैसला समझ से बाहर है। साल 2012 तक तीनों एमसीडी एक ही हुआ करती थीं लेकिन यूपीए सरकार ने बेहतर कामकाज का हवाला देकर एमसीडी को तीन हिस्सों में बांट दिया था। इसके बाद से राजधानी में तीन निगम काम कर रहे थे। अगर साउथ एमसीडी को छोड़ दें तो बाकी दोनों निगमों की आर्थिक हालत काफी खस्ता है और वे अपने कर्मचारियों की सैलरी तक नहीं दे पा रहे हैं। इसके चलते आए दिन कर्मचारी हड़ताल पर जाते हैं और दिल्ली की कचरे के ढेर में तब्दील हो जाती है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद अब तीनों डब्क् के डीलिमिटेशन की प्रक्रिया शुरू की जाएगी और परिसीमन पूरा होने पर चुनाव कराए जाएंगे। फिलहाल दिल्ली में विपक्षी दल बीजेपी के पास एमसीडी की सत्ता है। दिल्ली में नॉर्थ, साउथ और ईस्ट एमसीडी काम कर रही थीं लेकिन अब इनका मर्जर किया जाएगा। चुनाव तो आगे बढ़ेंगे ही।
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