दी कश्मीर फाइल्स पर इतनी चुप्पी क्यों ?

दी कश्मीर फाइल्स पर इतनी चुप्पी क्यों ? 

 देवरिया ब्यूरों  वेद प्रकाश तिवारी। 
19 जनवरी 1990, कश्मीरी पंडितों का नरसंहार, उनकी बहन, बेटियों के साथ बलात्कार एक सोची समझी साजिश थी। अवसरवादी क्रूर राजनीतिज्ञों की आंखें बंद हो गई थी क्योंकि मरने वाले हिन्दू थे, हाँ वह सब हिन्दू थे। लाखों कश्मीरी पंडितों को अपने ही घर से पलायन करना पड़ा था। महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ । युवाओं को सरेआम चौराहे पर गोली मारी गई। बलात्कार और रक्तपात फिर लोगों का पलायन यह दृश्य इतना हृदय विदारक था कि आज भी वहां से पलायन करने वाले लोग जब अपनी पीड़ा कहते हैं तो सुनकर ऐसा लगता है कि रक्तपात की ऐसी पराकाष्ठा और नहीं हो सकती । दी कश्मीर फाइल्स मूवी देखने के बाद दर्शकों का कलेजा मुंह को आता है । लोग थिएटर में दहाड़ मार कर रोने लगते हैं । पर उस समय की क्रूर और निष्ठुर सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगा । तुष्टीकरण की ऐसी राजनीति भारत जैसे लोकतंत्र में कुछ राजनीतिक पार्टियों के द्वारा इस तरह से की जा रही है कि जैसे लगता है हिंदुओं का भारत में कोई अस्तित्व ही नहीं है । भारतीय सिनेमा के बड़े-बड़े दिग्गज जो बात बात पर कैंडल मार्च निकालते हैं टि्वटर और फेसबुक पर हिंसा के विरोध में कुछ न कुछ लिखते रहते हैं इतनी व्यापक स्तर की हिंसा पर चुप्पी क्यों साध लिए थे। अरसा बीतने के बाद इस घटना चक्र पर बनी इस फिल्म के प्रमोशन के लिए बॉलीवुड के बड़े- बड़े सुरमा आज भी अपनी जुबान बंद किए हुए हैं। थियेटर और सिनेमा घरों से बाहर निकलने के बाद दर्शक बयान दे रहे हैं, वह कह रहे हैं कि हिंदू मरे जरूर पर देश के बाकी हिस्सों में रहने वाले हिंदू तक यह बात पहुंची ही नहीं । मीडिया को दबा दिया गया । बाकी हिंदुओं की चेतना नहीं मरी। आज थिएटर, सिनेमाघरों में लोग उस फिल्म को जाकर देख रहे हैं और हिंदू समाज के बच्चे- बच्चे तक यह सच्चाई पहुंच रही है कि किस प्रकार कश्मीर में तुष्टिकरण की राजनीति करके मौत का ऐसा तांडव किया गया ।
इस फिल्म के डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री कहते हैं कि फिल्म जो कश्मीर का सच बयां करती है उसे रोकने के लिए कुछ लोगों के द्वारा इतनी सारी कोशिशें क्यों ? उसको मेंस्ट्रीम मीडिया का सपोर्ट क्यों नहीं मिलता ? उसके बारे में चर्चा नहीं होती ? उन्होंने कहा कुछ दिन पहले दिल्ली में एक पत्रकार से मुलाकात हुई थी । उन्होंने मुझे एनडीटीवी का पेज खोल कर दिखाया जो  6 महीने पहले  बनाया गया था । जिसमें लिखा गया था ' फाइल्स इज ए प्रोपेगेंडा फिल्म' । बाद में उस पेज को डिलीट कर दिया गया और लिखा गया, यह फिल्म विवेक अग्निहोत्री के द्वारा  निर्देशित किया गया है । अगर वह पहले सच लिख रहे थे तो क्यों हटाया, अगर हटाया तो वह खुद प्रोपेगेण्डा कर रहे थे । उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री के टॉप इंटरटेनमेंट लीडरों पर सवाल उठाए और कहा जब इस फिल्म का ट्रेलर आया और लोग इसके बारे में बात करने लगे यहां तक कि पाकिस्तानी तक तस्वीर देख कर रोने लगे । ये लोग इतने चुप क्यों हो गए ?  जब हम किसी फिल्म में किसी आतंकवादी को ग्लोरिफाई करते हैं तो खूब सेलिब्रेशन होता है और सच बयां करने वाली इस फिल्म पर इतना संघर्ष क्यों ?  अपने भाई बहनों की कहानी जो सच है उसे दिखाने का प्रयास करते हैं तो मुझे आउटकास्ट किया जाता है ।
 द कश्मीर फाइल्स के डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री आजतक से बातचीत में कहते हैं-
ये फिल्म नहीं है, मेरे लिए मिशन है 
विवेक अग्निहोत्री कहते हैं, ‘मैं इस फिल्म को एक सवाल के साथ शुरू करना चाहता हूं । आपको अगर आप ही के घर से निकाल दिया जाए, तो कैसा लगेगा ? यह सवाल ही आपको परेशान कर देगा, तो जरा सोचें, उन मासूम कश्मीरी पंडितों का, जो रातो-रात अपने ही घर से अलग होकर रिफ्यूजी टैंट में रहने को मजबूर हुए । कितनों ने अपनी जान भी गंवा दी। मैंने जब पूरे वर्ल्ड में ट्रैवल करते हुए कश्मीरी पंडितों से बात की, तो मुझे एहसास हुआ कि ये बात जरूर आनी चाहिए। 
विवेक कहते हैं ‘द कश्मीर फाइल्स मेरे लिए फिल्म नहीं बल्कि एक मिशन बन गई है। मैं इस दौरान 700 से ज्यादा फर्स्ट जनरेशन विक्टिम से मिला, जिनमें कइयों के पैरेंट्स का कत्ल उनकी आंखों के सामने हुआ। कइयों की मां-बहन का रेप किया गया। कइयों के परिवार वालों को जिंदा जला दिया गया। मैं वर्ल्ड के कोने-कोने में जाकर उनसे मिला, उनकी दास्तां सुनी और यह वीडियो संजोया है’। विवेक कहते हैं कि वर्ल्ड की किस इंडस्ट्री ने आतंकवाद को जस्टिफाई किया है। लेकिन हमारे देश में तो न केवल टेरेरिज्म को ग्लोरिफाई किया गया है बल्कि ऐसी फिल्मों को नेशनल अवॉर्ड्स तक मिले हैं। ये कहां का इंसाफ है ? मेरा यह सवाल है कि एक फिल्म जो कश्मीर नरसंहार पर बनी है, तो उसे रोकने की इतनी कोशिश क्यों की जा रही है।
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