नई पेंशन योजना पेंशन के नाम पर केवल दिवास्वप्न हैं:-वरुण पाण्डेय*

नई पेंशन योजना पेंशन के नाम पर केवल दिवास्वप्न हैं:-वरुण पाण्डेय*

सीतामढ़ी:- दिनांक -20.01.2022 को पुरानी पेंशन बहाली हेतु आंदोलनरत संगठन *नेशनल मूवमेंट फ़ॉर ओल्ड पेंशन स्कीम,बिहार* के *प्रदेश अध्यक्ष वरुण पाण्डेय* के द्वारा सीतामढ़ी जिला के व्यवहार न्यायालय,सीतामढ़ी, पुलिस लाइन, सीतामढ़ी, निबंधन सहयोग समितयाँ कार्यालय,सीतामढ़ी,ITI सीतामढ़ी, सिविल सर्जन कार्यालय,सीतामढ़ी आदि कार्यालय में पदस्थापित एन पी एस कर्मियों को नई पेंशन स्कीम के खामियों को बताया गया, जिसमें सीतामढ़ी जिला समन्वयक मो.अलीमुद्दीन एवं श्री राकेश कुमार,श्री अरमान अली, श्री रवि झा, सहकारिता पदाधिकारी, श्री राजेश यादव, मंत्री, बिहार पुलिस एसोसिएशन, सीतामढ़ी, श्री समीर चौधरी तथा अन्य कर्मिगण उपस्थित रहें।
*बिहार पुलिस मेंस एसोसिएशन, सीतामढ़ी शाखा के अध्यक्ष श्री चंदन तिवारी एवं मंत्री *श्री राजेश यादव* से बात किया गया तथा दोनों लोगों को एन पी. एस. के खामियों को बताया गया तो उन्होंने कहाँ की सीतामढ़ी जिले के पूरे पुलिस कर्मिगण पुरानी पेंशन के लड़ाई में चट्टानी एकता के साथ खड़े हैं तथा आने वाले दिनों में सीतामढ़ी में आंदोलन खड़ा किया जाएगा। साथ ही सभी कार्यालय के कर्मियों ने एकजुट होकर कोरोना काल के बाद मुहिम छोड़ने का निर्णय लिया हैं।
बताते चले कि नई पेंशन योजना( New Pension Scheme), जिसे वर्ष 2004 में वाजपेई सरकार द्वारा एक अध्यादेश के माध्यम से लाया गया था और वर्ष 2004 से 2013 तक यह अध्यादेश के माध्यम से ही चलता रहा, बाद में 2013 में मनमोहन सरकार द्वारा इसे पीएफआरडीए एक्ट के माध्यम से कानूनी रूप दिया गया और इसे आजीवन कर्मचारियों के गले की घंटी बना कर छोड़ दिया गया.
एनएमओपीएस(National movement for old pension Scheme) अपने स्थापना काल से ही एनपीएस का लगातार विरोध कर रहा है, चाहे 30 अप्रैल 2018 का रामलीला मैदान में एनपीएस गो बैक की रैली हो या नवंबर 2018 की रामलीला मैदान की रैली जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का समर्थन प्राप्त हुआ था;
जनवरी-फरवरी 2019 जंतर मंतर पर धरना हो या राजस्थान के प्रत्येक जिला मुख्यालय में एक दिवसीय धरना हो,
या 8 अगस्त 19 को भारत छोड़ो आंदोलन की तर्ज पर एनपीएस भारत छोड़ो का अभियान हो या जून 2020 का ट्विटर अभियान...
एनएमओपीएस द्वारा जोरदार तरीके से एनपीएस का विरोध किया जा रहा हैं।
उक्त विरोध के कारण ही केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर NPS रूल में बदलाव किया जाता रहा हैं ;चाहे वो सरकार का कॉन्ट्रिब्यूशन 14% हो या कुछ राज्यों में NPS कर्मियों के देहांत के बाद पारिवारिक पेंशन हो।
अभी सिलसिलेवार तरीके से पूरे देश में में इसका विरोध किया जा रहा है, चाहें *दिनांक-21/11/2021 का लखनऊ में पेंशन शंखनाद रैली* हो या उतराखण्ड का आंदोलन हो।
एनपीएस की सबसे महत्वपूर्ण कमी यह है कि सेवानिवृत्ति के बाद सेवानिवृत्त सरकारी सेवक को कोई भी निश्चित गारंटी नहीं दी जाती.
आज कई सेवानिवृत्त सरकारी सेवकों को एनपीएस में जो पेंशन दी जा रही है वह सामान्य वृद्धावस्था पेंशन से भी कम की राशि दिखती है.
पीएफआरडीए की कार्यप्रणाली बेहद संदिग्ध है और उसमें पारदर्शिता का पूरा पूरा अभाव है, सभी सरकारी कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद एनपीएस के माध्यम से बैंक और बाजार के भरोसे छोड़ दिया गया है,
एनपीएस में सरकार का भी नुकसान ही है, पैसा कर्मचारियों का हो और उसमें सरकार का भी शेयर लगे और उस पैसे से फायदा बैंक और बाजार उठाएं.
हाल ही में कोरोना काल में सभी के NPS में राशि कम हुई है।
यह कहां की समझदारी है.... एनपीएस के माध्यम से सरकार ने सरकारी सेवकों और अपने दोनों शेयर को मिलाकर पैसे को जुए में लगा दिया,
सदियों से हमारे समाज में यह माना जाता रहा है कि जुए में कभी फायदा नहीं होता और कुछ नहीं तो कम से कम नैतिक पतन तो जरूर हो जाता है,
एनएमओपीएस की लड़ाई का सरकार पर लगातार असर भी हो रहा है और सरकार द्वारा धीरे धीरे कर्मचारी हित में काम किया भी जा रहा है, परंतु यह ऊंट के मुँह में जीरा के समान है और हम इससे कतई संतुष्ट नहीं है;
आज भी विधायक, सांसद, माननीय न्यायाधीश आदि को पुरानी पेंशन दी जा सकती है, जिन्हें की सेवानिवृत्ति के उपरांत भी कई प्रकार के विशेषाधिकार मिलते रहते हैं तो सामान्य सरकारी सेवक को सेवानिवृत्ति के बाद भगवान भरोसे छोड़ने का क्या औचित्य है.
अतः इस लड़ाई को *"अभी नहीं तो कभी नहीं"* की तर्ज पर लड़ने की आवश्यकता है क्योंकि केंद्र में भी मजबूत इच्छाशक्ति की सरकार हैं, राज्य में भी उसी गठबंधन की सरकार है इसलिए एनपीएस को वापस करने के लिये राज्य में काफी संघर्ष की आवश्यकता हैं।
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