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ठिठुरता ठंड

ठिठुरता ठंड 

कंपकपाती ये रातें 
सिसकती रही यादें 
ठिठुरते हुए ठंड की 
बीत गयी रे बचपन
आ गयी बर्फीली सी 
जर्रा -जर्रा  हिलाने 
थरथराती जवानी 
साज बाज के साथ 
धरा  अंबर  थर्राने
चाँद की शीतलता 
भी लगे है शरमाने 
मुँह छुपाकर देखो 
सूरज दादा ने भी 
टेक दिए हैं घुटने 
ओस की परतों से 
किस तरह बिछी है 
राहें चौराहे पगडंडी 
बहती हवाएँ नर्तकी 
प्रचण्ड रूप दिखाती 
 ठंड भरी ये जवानी।
डॉ. इन्दु कुमारी 
         मधेपुरा बिहार
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