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बीटिंग द रिट्रीट में बदलाव

बीटिंग द रिट्रीट में बदलाव

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
कहते हैं ठहरा हुआ पानी भी एक न एक दिन बदबू देने लगता है, इसलिए परिवर्तन को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। मानव एवं प्रकृति दोनों का सहचर्य रहा है। प्रकृति में बदलाव होता है तो हमें कुछ अटपटा भले ही लगे, लेकिन बाद में रुचिकर और हितकर भी हो जाता है। गणतंत्र दिवस की परेड के बाद तीसरे दिन बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम होता है। इस दिन भी राष्ट्रीय ध्वज को सलामी देते हुए परेड निकलती है। इस अवसर पर एक ध्वनि बजायी जाती है जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को प्रिय थी। अब तय किया गया है कि बीटिंग रिट्रीट में स्वर्गीय प्रदीप का कालजयी गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों... की ध्वनि बजेगी। हो सकता है कि कुछ लोग इस पर नुक्ताचीनी करें लेकिन स्वर्गीय प्रदीप का यह गीत राष्ट्रीय पर्वों पर बहुत ही सम्मान के साथ सुना जाता है। कहते हैं पहली बार जब दिल्ली के रामलीला मैदान में लतामंगेशकर ने यह गीत गाया था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के आंसू निकल आए थे। प्रदीप जी से यह गीत भी बड़े राष्ट्रीय उद्देश्य से लिखवाया गया था। इसलिए वीटिंग द रिट्रीट में इस गीत की धनि सुनना सार्थक कदम माना जाएगा।

पता चला है कि इस बार 26 जनवरी की गणतंत्र दिवस परेड के बाद जब 29 जनवरी को बीटिंग रिट्रीट होगी तो उसमें बदलाव के बाद गीत ‘एबाइड विद मी’ की धुन को हटाकर ऐ मेरे वतन के लोगों की धुन बजाई जाएगी। ये गाना देश की सेना को सम्मान देने वाला माना जाता रहा है। पहली बार इसे 27 जनवरी 1963 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सामने गाया गया था। ये गाना कैसे बना और फिर कैसे लोगों की जुबान पर चढ़ गया, इसकी भी अपनी एक कहानी है।

इस सदाबहार कालजयी गाने को कवि प्रदीप ने लिखा था और इसे सबसे पहले लता मंगेशकर ने 27 जनवरी 1963 को गाया था। जब लता इसको गा रही थीं तो माहौल इतना भावुक हो गया कि ज्यादातर लोगों की आंखों में आंसू छलक आए, जिसमें नेहरू भी थे। क्या आपको पता है इस गाने का जन्म कैसे हुआ था। कवि प्रदीप ने एक इंटरव्यू में बाद में बताया कि ये गाना कैसे बना। कैसे हुई इसकी पैदाइश। 1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत की बुरी हार हुई थी। पूरे देश का मनोबल गिरा हुआ था। ऐसे हालात में लोगों ने फिल्म जगत और कवियों की ओर देखा कि वो कैसे सबके उत्साह और मनोबल को बढ़ा सकते हैं। सरकार ने भी फिल्म उद्योग से इस बारे में कुछ करने की गुजारिश की, जिससे देश फिर जोश से भर उठे। चीन से मिली हार के गम पर मरहम लगाई जा सके। उस जमाने में कवि प्रदीप ने देशभक्ति के कई गाने लिखे थे। उन्हें ओज का कवि माना जाने लगा था। लिहाजा उन्हीं से कहा गया कि आप एक गीत लिखें। तब देश में फिल्मी जगत के तीन महान गायकों की तूती बोलती थी। वो थे मोहम्मद रफी, मुकेश और लता मंगेशकर। चूंकि देशभक्ति के कुछ गाने रफी और मुकेश की आवाज में गाये जा चुके थे, लिहाजा नया गाना लता मंगेशकर को देने की बात सूझी लेकिन इसमें एक अड़चन थी। उनकी आवाज सुरीली और रेशमी थी। उसमें जोशीला गाना शायद फिट नहीं बैठ पाता। तब कवि प्रदीप ने एक भावनात्मक गाना लिखने की सोची इस तरह ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाने का जन्म हुआ, जिसे जब दिल्ली के रामलीला मैदान में लता ने नेहरू के सामने गाया तो उनकी आंखों से भी आंसू छलक गए।

इस गीत ने अगर कवि प्रदीप को अमर कर दिया तो लता मंगेशकर हमेशा के लिए एक गाने से ऐसी जुड़ीं कि ये उनकी भी बड़ी पहचान बन गया। कवि प्रदीप ने इस गीत का राजस्व युद्ध विधवा कोष में जमा करने की अपील की। कवि प्रदीप शिक्षक थे। कविताएं भी लिखा करते थे। एक बार किसी काम के सिलसिले में उनका मुंबई जाना हुआ। वहां उन्होंने एक कवि सम्मेलन में हिस्सा लिया। वहां एक शख्स आया था जो उस वक्त बॉम्बे टॉकीज में काम करता था। उसे उनकी कविता बहुत पसंद आई और उसने ये बात बॉम्बे टॉकीज के मालिक हिमांशु राय को सुनाई।

इसके बाद कवि प्रदीप हिमांशु राय से मिलवाया गया। हिमांशु राय को उनकी कविताएं बहुत पसंद आईं। उन्हें तुरंत 200 रुपए प्रति माह पर रख लिया गया, जो उस वक्त एक बड़ी रकम होती थी।

कवि प्रदीप का मूल नाम ‘रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी’ था। उनका जन्म मध्य प्रदेश प्रांत के उज्जैन में बड़नगर नामक स्थान में हुआ। कवि प्रदीप की पहचान 1940 में रिलीज हुई फिल्म बंधन से बनी। हालांकि 1943 की स्वर्ण जयंती हिट फिल्म किस्मत के गीत “दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है” के जरिए वो ऐसे महान गीतकार हो गए, जिनके देशभक्ति के तरानों पर लोग झूम जाया करते थे। इस गाने पर तत्कालीन ब्रिटिश सरकार उनसे नाराज हो गई। उनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए गए। बचने के लिए वह भूमिगत हो गये। लगभग पांच दशक के फिल्मी पेशे में कवि प्रदीप ने 71 फिल्मों के लिए 1700 गीत लिखे। उनके देशभक्ति गीतों में, फिल्म बंधन (1940) में “चल चल रे नौजवान”, फिल्म जागृति (1954) में “आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं”, “दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल” और फिल्म जय संतोषी मां (1975) में “यहां वहां जहां तहां मत पूछो कहां-कहां” है। भारत सरकार ने उन्हें सन 1997-98 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया। 1998 में कवि प्रदीप का निधन हो गया था। कालजयी बन चुके गाने ऐ मेरे वतन के लोगों का संगीत सी. रामचंद्र ने दिया था। उनकी धुन भी दिल को छूने वाली थी। सी रामचंद्र को चितालकर या अन्ना साहिब भी कहा जाता था। वह फिल्मों में संगीत निर्देशक थे और कभी कभार प्लेबैक सिंगर की भूमिका भी निभाई। उन्होंने बालीवुड की कई फिल्मों में संगीत दिया। उनका जन्म 12 जनवरी 1918 को एक मराठी ब्राह्मण परिवार में अहमदनगर में हुआ। पांच जनवरी 1964 को उनका निधन हो गया। (हिफी)
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