2021 में वैज्ञानिक उपलब्धियां

2021 में वैज्ञानिक उपलब्धियां

(अचिता-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

कोरोना की दुखद स्मृतियां देने वाला वर्ष 2021 विज्ञान के क्षेत्र में कई उपलब्धियां भी दे गया है। इस वर्ष चिकित्सा वैज्ञानिकों ने कोरोना इंजेक्शन विकसित किये जो इस महामारी को नियंत्रित करने में काफी मददगार साबित हुए हैं। नासा का सूर्य अभियान तो सभी को चैंका गया जिसे अब तक असंभव माना जाता था। इसी वर्ष मानव इतिहास की नई मानव प्रजाति ड्रैगनमैन की खोज की गयी। चीन तो एक सुपर सोल्जर बना रहा है जिसमें बंदर की मदद ली जा रही है। डार्बिन की थ्योरी के अनुसार बंदर हमारे पूर्वज हुआ करते थे। जलवायु विज्ञान को लेकर भी विज्ञान के दो कदम आगे बढ़े हैं। पशु-पक्षियों को लेकर भी कई खोजें इसी वर्ष हुई हैं। पता चला कि बिना दांत के हाथी पैदा हो रहे हैं और चमगादड़ों ने अपने पंख बड़े कर लिये हैं।

द सन की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि एक ह्यूमनजी का जन्म अमेरिका में एक हाइब्रिडाइजेशन प्रोजेक्ट के दौरान हुआ था, लेकिन उसे लैब कर्मियों ने ही मार दिया था। इस प्रोजेक्ट पर अभी भी चीन की एक लैब काम कर रही है जहां कानूनी मुद्दे कम हैं। इंसानों के पूर्वज बंदर थे। अब चीन इन दोनों के कॉम्बिनेशन से महामानव बना रहा है। चीन के लैब में इंसान और बंदर का हाइब्रिड तैयार हो रहा है, जो सुपर सोल्जर बनेंगे। ये ऐसे सोल्जर होंगे, जिन्हें न तो कभी भूख-प्यास लगेगी और न कभी नींद आएगी। इन्हें स्पेस से लेकर समुद्र की लड़ाई में उतारा जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि लोगों की जिंदगी बचाने के लिए ऑर्गन ट्रांसप्लांट में इस हाइब्रिड का उपयोग किया जा सकता है। यूएस साल्क इंस्टीट्यूट फॉर बायोलॉजिकल स्टडीज के प्रोफेसर जुआन कार्लोस इजपिसुआ बेलमोंटे के नेतृत्व में 2019 में वैज्ञानिकों को बड़ी कामयाबी हासिल हुई थी। इस टीम ने कथित तौर पर एक मानव और बंदर का हाइब्रिड तैयार किया था, जो 19 दिनों तक जीवित रहा था। प्रयोग करने वाली वैज्ञानिकों की टीम ने बताया कि उन्होंने ऐसी मानव कोशिकाओं को बंदर में इंजेक्ट किया, जो उसमें भ्रूण बना सके। बच्चे के जन्म लेने से पहले यह प्रयोग रोक दिया गया। दरअसल रूस के वैज्ञानिकों ने यह प्रयोग चीन में किया, क्योंकि उनके देश में ऐसा करने की अनुमति नहीं है। रूस में सोवियत वैज्ञानिकों को 1920 के दशक में तानाशाह स्टालिन ने एक हाइब्रिड एप-मैन (बंदर-मानव) सुपर सैनिक बनाने का आदेश दिया था, जो चरम परिस्थितियों में भी काम करने में सक्षम हो जहां आम इंसानों के लिए जीवित रहना भी मुश्किल था। उस समय के गुप्त दस्तावेज, जिन्हें 1990 के दशक में सार्वजिनक किया गया था, बताते हैं कि क्रेमलिन प्रमुख बेहद ताकतवर लेकिन अविकसित दिमाग वाली मानव-बंदरों की एक सेना चाहते थे जो लचीली और भूख-प्रतिरोधी हो। 1967 में चीन में किए गए मानव-चिंपैंजी क्रॉसब्रीडिंग के एक प्रयोग की जानकारी दी गई। कहा जाता है कि चीनी सरकार ने इस परियोजना को दोबारा शुरू करने के लिए कहा था। इसमें शामिल वैज्ञानिकों में से एक डॉ जी योंगजियांग ने बताया कि उनका लक्ष्य एक

ऐसा जानवर पैदा करना था, जो बोल सके और उसमें चिंपैंजी जैसी ताकत हो।

साल 2021 में कोविड-19 का साया रहने के बावजूद कई उल्लेखनीय वैज्ञानिक कार्य रहे। यह सच है कि पिछले दो साल में कोविड महामारी के कारण शोधकार्यों की गति धीमी हो गई थी लेकिन 2021 में टीकाकरण और अन्य उपायों के कारण दुनिया के बाकी क्रियाकलापों को कुछ गति मिल सकी। साल 2021 की सबसे बड़ी खोजों में से मानव इतिहास में एक नई प्रजाति ड्रैगनमैन प्रजाति की खोज उल्लेखनीय रही जिससे हमारे मानव इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया। यह प्रजाति होमोसेपियन्स और निएंडरथॉल मानवों के साथ पनपी थी। इस मानव के जीवाश्म को एक किसान परिवार ने 90 साल पहले हासिल किया था और 2018 में एक यूनिवर्सिटी म्यूजियम को सौंपा था। उसके बाद से इस पर गहन अध्ययन चलता रहा और इसे इसी साल पुरातन मानव की एक नई मानव प्रजाति का जीवाश्म घोषित किया गया। इसे होमो लोंगी या ड्रैगन मैन कहा जाता है।

इस साल कोविड-19 की वैक्सीन आदि पर शोधों पर बहुत जोर रहा। इसकी वजह से वैज्ञानिक दो एमआरएनए वैक्सीन विकसित करने में सफल रहे। इस साल फाइजर मॉडर्ना को वैक्सीन और कोविडशील्ड समेत कई वैक्सीन लोगों तक पहुंचीं जिससे इस साल के मध्य से बड़ी संख्या में लोगों को कोविड-19 से राहत भी देखने को मिलने लग गई। भारत के 41 प्रतिशत से ज्यादा लोगों की वैक्सीन के दोनों डोज लग गए। वहीं 141 करोड़ लोगों को कम से कम एक डोज लग चुका है। अमेरिका की 61 प्रतिशत जनसंख्या को दोनों डोज लग चुका है। साल के अंत में ओमिक्रॉन जैसे वेरिएंट के फिर से फैलने से कई देशों में तीसरी लहर आने की खतरा मंडरा रहा है। इसलिए संपूर्ण वैक्सीनेशन पर जोर दिया जा रहा है। इस साल जलवायु परिवर्तन भी काफी सुर्खियों में रहा। 2015 में पेरिस सम्मेलन के बाद इस साल ग्लासगो में सम्मेलन हुआ था। वहीं दूसरी तरह तमाम शोधों में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों की गंभीरता को और ज्यादा रेखांकित किया। दुनिया ने जगंलों में आग, सूखे और ग्रीष्म लहरों की घटनाओं में तेजी भी देखी, लेकिन सबसे बड़ा प्रभाव समुद्र के अंदर देखने को मिला है। बढ़ते तापमान ने कोरल रीफ यानी मूंगा चट्टानों को बहुत बुरी तरह से प्रभावित किया है। उनके विरंजित होने से अब अस्तित्व का बहुत ज्यादा खतरा मडंरा रहा है। हमारे महासागर 2009 के बाद से एक दशक में 14 प्रतिशत मूंगा चट्टानें गवां चुके हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया 1950 से अब तक आधी मूंगा चट्टानें गंवा चुकी है। इसे पर्यावरण और महासागरीय जीवन के लिए बहुत बड़ा खतरा माना जा रहा है। (हिफी)
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