क्रिप्टो करेंसी पर मोदी का नजरिया
(अखिलेश पाठक-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
अर्थ व्यवस्था की उभरती तकनीक क्रिप्टो करेंसी में 6 अरब डालर का खुदरा निवेश हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी चाहते हैं कि इस प्रकार की अर्थव्यवस्था से लोकतंत्र को मजबूत करना चाहिए लेकिन रिजर्व बैंक आफ इंडिया (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास इसे देश के लिए लाभदायक नहीं मानते हैं। इसको लेकर असमंजस कायम है। लोगों का मानना है कि डिजिटल करेंसी वित्तीय स्थिरता के लिए खतरा बन सकती है। इसलिए अर्थशास्त्रियों को इस पर खुलकर अपनी राय भी देनी चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 दिसम्बर को कहा कि क्रिप्टोकरेंसी जैसी उभरती तकनीक का इस्तेमाल लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए किया जाना चाहिए। रिपोर्ट के मुताबिक, पीएम मोदी क्रिप्टोकरेंसी के रेगुलेशन के ढांचे के लिए जल्द ही फैसला लेने वाले हैं। हालांकि इसको लेकर असमंजस कायम है। नीतिनिर्माताओं का कहना है कि रेगुलेशन से बाहर डिजिटल करेंसी अर्थव्यवस्था और वित्तीय स्थिरता के लिए खतरा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ लोकतंत्र के मुद्दे से जुड़ी समिट फॉर डेमोक्रेसी पर वर्चुअल कान्फ्रेंस में पीएम मोदी ने कहा, हमें सोशल मीडिया और क्रिप्टोकरेंसी जैसी उभरती तकनीकों पर वैश्विक मानदंड तय करने पर संयुक्त तौर पर काम करना चाहिए।
यह पहला मौका नहीं है, जब पीएम मोदी ने क्रिप्टोकरेंसी के नियमन के लिए सभी देशों से साथ मिलकर काम करने का आह्वान किया हो। इससे पहले 18 नवंबर को सिडनी डायलॉग के दौरान भी पीएम मोदी ने सभी लोकतांत्रिक देशों से यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया था कि क्रिप्टोकरेंसी का गलत इस्तेमाल न हो।
हमारे देश में सरकार ने पहले सभी तरह की क्रिप्टोकरेंसी प्रतिबंधित करने का इरादा जताया था लेकिन बाद में उसने कहा कि वो इसके लिए नियामकीय ढांचा तैयार करेगी। इसके लिए जल्द ही नया क्रिप्टो बिल संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा।
सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि क्रिप्टो को भारत में मुद्रा या किसी भी आधिकारिक लेनदेन का हिस्सा नहीं बनाया जाएगा। विधेयक में क्रिप्टोकरेंसी की जगह क्रिप्टोएसेट शब्द डाला गया है। इस विधेयक के तहत वित्तीय स्थिरता को किसी भी खतरे को कम से कम करने का प्रयास है। संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने वाले विधेयक के तहत डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर टेक्नोलॉजी फ्रेमवर्क स्थापित करने का प्रस्ताव है। साथ ही आरबीआई द्वारा भविष्य में जारी की जाने वाली डिजिटल करेंसी की रूपरेखा तय की जाएगी। यह डिजिटल करेंसी आरबीआई कानून के तहत नियमित की जाएगी।
क्रिप्टोकरेंसी का आतंकवाद विरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल न हो, इसके लिए मनी लांड्रिंग ऐक्ट के प्रावधानों में भी संशोधन किया जाएगा। बिल में प्रावधान है कि क्रिप्टो फाइनेंस पर सरकार के नियमों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों और कंपनियों पर 20 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है और 1.5 साल तक की जेल हो सकती है। क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े नए बिल में इसका उल्लेख होगा। क्रिप्टो बिल के तहत जनहित को ध्यान में रखते हुए क्रिप्टो माइनिंग जैसी कुछ गतिविधियों को इजाजत दे सकती है। इसमें एक्सचेंज के माध्यम से होल्डिंग, सेलिंग, डीलिंग जैसी गतिविधियों को भी इजाजत दी जा सकती है। क्रिप्टोएसेट का लेनदेन क्रिप्टो एक्सचेंज प्लेटफॉर्म के जरिये होगा और इसे भारतीय प्रतिभूति विनियम बोर्ड के जरिये रेगुलेट किया जाएगा। सरकार क्रिप्टोएसेट रखने वालों के लिए इसका खुलासा करने के लिए एक कटऑफ डेट तय करेगी और इसे क्रिप्टो एक्सचेंज प्लेटफॉर्म के तहत लाएगी- जो सेबी द्वारा रेगुलेट किए जाएंगे।
क्रिप्टो करेंसी को लेकर इससे पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा था कि नया बिल वर्चुअल करेंसी के जगत में तेजी से हो रहे बदलावों को अपने दायरे में लेगा। इसमें पिछले विधेेयक के नियमों को भी शामिल किया जाएगा, जो अभी तक इसका हिस्सा नहीं रहे हैं। क्रिप्टोकरेंसी पर संसद में पेश किए जाने वाले एक नए बिल को लेकर हाल के समाचारों से भ्रम की स्थिति बनी है। शुरुआत में इससे घबराहट का माहौल बना था और देश में क्रिप्टोकरेंसी निवेशकों ने बिकवाली शुरू कर दी थी क्योंकि बैन की आशंका बढ़ गई थी। ऐसे में भारत में क्रिप्टो का भविष्य क्या है? क्या देश में वास्तव में क्रिप्टोकरेंसी पर बैन लगेगा? सरकार जो बिल लाने की योजना बना रही है वह किस तरह का है? क्या मुझे क्रिप्टोकरेंसी में निवेश जारी रखना चाहिए? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो बहुत से लोगों के दिमाग में हैं क्योंकि क्रिप्टोकरेंसी में लाखों भारतीयों का कारोबार और निवेश जारी है। ऐसे कुछ बड़े प्रश्नों के उत्तर और सामान्य उलझनों को दूर करने के लिए, क्वाइन स्विच कुबेर ने कंपनी के सीईओ आशीष सिंघल के साथ हाल ही में एक एएमए सेशन आयोजित किया था। क्वाइन स्विच अभी देश के सबसे बड़े क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंजों में से एक है। इसके को-फाउंडर और सीईओ आशीष ने इससे पहले रीप बेनेफिट, अर्बन टेलर, माइक्रोसॉफ्ट और अन्य कंपनियों में काम किया है। उन्होंने नेताजी सुभाष इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से डिग्री ली है। उनके एक पावरफुल और यूजर-फ्रेंडली क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज शुरू करने के नजरिए का परिणाम क्वाइन स्विच का लॉन्च है।
क्वाइन स्विच के एएमए में जिन प्रश्नों पर चर्चा की गई उनमें से कुछ यहां दिए जा रहे हैं। प्रस्तावित बिल का भारत में क्रिप्टो के लिए क्या मतलब है? आशीष कहते हैं चलिए पहले प्रस्तावित क्रिप्टो बिल का इतिहास समझते हैं। हमें केवल बिल के शीर्षक की जानकारी है, जो पिछले साल लाए जाने वाले बिल के समान है। हालांकि, वह बिल संसद में प्रस्तुत नहीं किया गया था और चीजें तब काफी अलग थीं। मौजूदा स्थितियों की बात की जाए तो भारत में क्रिप्टो कम्युनिटी इस अवधि में तेजी से बढ़ी है। लाखों लोग अब क्वाइन स्विच और अन्य एप्लिकेशंस का हिस्सा हैं। क्रिप्टो को अब एक एसेट क्लास के तौर पर देखा जा रहा है और इसे केवल एक करेंसी की तरह नहीं मानना चाहिए। यह भविष्य में गूगल, एमेजॉन, आदि की तरह बन सकता है। सरकार क्रिप्टो के कॉन्सेप्ट को समझने की कोशिश कर रही है और इसके साथ ही उसकी सोच भी बदल रही है। हमें नहीं पता कि प्रस्तावित बिल में वास्तव में क्या है। हम उम्मीद कर रहे हैं कि क्रिप्टोकरेंसी को रेगुलेट करने के लिए सरकार के बिल लाने के प्रस्ताव से एक प्रगतिशील क्रांति होगी।
आशीष का मानना है कि उनकी राय पक्षपात वाली है क्योंकि वे एक क्रिप्टो कंपनी चलाते हैं। वे कहते हैं कि क्रिप्टो से फाइनेंस इंडस्ट्री और कंपनी में फाइनेंशियल इंफ्रास्ट्रक्चर में बदलाव हो सकता है। अभी तक हमें प्रस्तावित क्रिप्टोकरेंसी बिल के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। सरकार यह समझती है कि क्रिप्टो इंडस्ट्री बहुत बड़ी हो सकती है। वे मुख्यतौर पर निवेशकों को नुकसान पहुंचाने की आशंका वाले भ्रामक विज्ञापनों जैसी चीजों से चिंतित हैं। हमें सरकार को क्रिप्टो के फायदे और नुकसान के बारे में बताने और इंडस्ट्री को खुला रखने के साथ इसके गलत इस्तेमाल से बचने में उनकी मदद करने की जरूरत है। क्रिप्टो को स्वीकृति मिलना ही हम सभी के लिए एक बड़ी उपलब्ध है। क्रिप्टो रेगुलेशन पर एक बिल लाना सरकार के लिए भी मुश्किल है क्योंकि हर दिन एक बिल्कुल नया कॉन्सेप्ट सामने आता है। एक रेगुलेशन बनाने का मतलब ऐसा बिल लाना है जो न केवल अभी बल्कि पांच वर्ष बाद भी कारगर होगा। क्रिप्टो पर पूरी तरह बैन लगना टेक्नोलॉजी के नजरिए से काफी मुश्किल है क्योंकि प्रत्येक चीज आपस में जुड़ी है। एक्सचेंजों या क्रिप्टो को बैन करना समाधान नहीं है। इसके संचालन के लिए रूपरेखा बनाना एक आदर्श समाधान हो सकता है।
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